ये कानपुर है मेरी जान !!!!




यहाँ लोग एक दूसरे से मजाक नहीं बल्कि चिकाई-तफरी करते हैं !!! 

यहाँ के लोग कहीं जाने के लिये टेम्पो या ऑटो नहीं, बल्कि "विक्रम" पकड़ते है !!! 

यहाँ थप्पड़ या तमाचा नहीं बल्कि "कंटाप" पड़ता है !!! 

यूपी का इकलौता ऐसा शहर जो साल में दो बार होली खेलता है !!!

यहाँ जब खोये से भरी गुझिया चाशनी में डूबकर बाहर निकलती है, तो न चाहते हुये भी दिल इश्क जैसी लालच में डूब जाता है !!!!

जो काम बड़ी से बड़ी रिश्वत से नहीं होता है, वही काम यहाँ पर बस एक "मसाले" की पुड़िया से हो जाता है !!!! 

यहाँ 80 फ़ीट की रोड है और 7 रास्तों वाला बड़ा चौराहा, यहाँ भीष्म ने सरसैया ली थी, और यहीं के डीएवी से पढ़े थे अटल जी और कोविंद जी !!!!

यहाँ जनरलगंज है और कलक्टरगंज है !!!! 

हाँ !!

कलक्टरगंज से याद आया, यहाँ लम्बी लम्बी छोड़ने को "झाड़े रहो कलक्टरगंज" कहते हैं !!!! 

बकैती और भौकाल में ये शहर आज भी नम्बर वन है और जब काण्ड होता है तो यहाँ ईंट पत्थर नहीं बल्कि "अद्धा गुम्मा" चलता है !!! 

यहाँ शान को शान नहीं बल्कि बड़ी ही ठसक के साथ "रंगबाजी" कहा जाता है !!!!

पूरब का मैनचेस्टर यूपी की शान !!!! 

ये कानपुर है मेरी जान !!!! 


नोट : अपनी वाली को सेटिंग बोलने की परम्परा इसी शहर ने शुरू की थी  

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