ख़ुशी
=======================

"सुन मेरे हमसफ़र, क्या तुझे इतनी सी भी खबर,"

ये खूबसूरत सुरीला गाना अविनाश की गाडी में मंद मंद बज रहा था, और इसकी धुन में खो चूका अविनाश, बस सिमरन के बारे में ही सोच रहा था । कई हसीं पल उसकी विंडस्क्रीन पे चल रहे थे, जिनमे वो खोता सा चला जा रहा था,
उसके बगल वाली सीट में एक अंगूठी थी, वो अंगूठी जो उसने अभी चंद मिनट पहले एक सर्राफ के यहाँ से इस उम्मीद में खरीदी थी की इसको पहना कर वो सिमरन को हमेश के लिए अपनी बना लेगा,
थोड़ी आगे पहुँचने पर एक बेकरी की दूकान पर अविनाश ने गाडी रोकी और तेजी से उस बेकरी दूकान में गया, उसके क़दमों में जल्दबाजी थी की
"कहीं देर न हो जाये"
अंदर पहुँच कर उसने अपने केक के लिए पूंछा (जो उसने सिमरन के लिए बनवाया था, आज सिमरन का जन्मदिन भी था)

दुकानदार ने अंदर से केक निकल कर अविनाश के सामने रखा., और उसपर लिखने के लिए नाम पूंछा,
पहले तो दिल के स्वरुप में उस चॉकलेटी केक को देख कर अविनाश की आँखें चमक गयीं और फिर जुबां में केक सरीखी मिठास लिए एक नाम निकला......
"सिमरन"

वो केक लेकर गाड़ी में वापस आया, उसकी धड़कने तेज़ थीं, दिल की धड़कने उसके कार के इंजन को बराबर प्रतिस्पर्धा दें रहीं थी, और चेहरे पर एक शांत मुस्कान जो उसकी आँखों से झलक रही थी,
उसने गाडी चालू की और चल पड़ा, इस बार एफ एम् में गाना चालू हुआ.........

"लग जा गले की, फिर हसीं रात हो न हो,
शायद फिर इस जनम, मुलाकात हो न हो"

लाजपत नगर,(दिल्ली), सिमरन के घर के बहार पहुँच कर, अविनाश ने घर के नीचे से सिमरन को फ़ोन किया, वो उसे सरप्राइज़ देना चाहता था इसलिए पहले नहीं बताया था ।
कानों में फ़ोन लगाये अविनाश की धड़कने इतनी तेज थी की वो अपने फ़ोन से आने वाली आवाज भी ठीक से नहीं सुन पा रहा था....
"आप जिस नम्बर पर संपर्क करना चाहते हैं, वो इस समय किसी और कॉल पे व्यस्त है"

खैर चौथी कोशिश में फोन उठा और उधर से एक सुरीली आवाज ने अविनाश के कानो में गुदगुदी सी करी,

"हाँ अविनाश !"

हैप्पी बर्थडे टू यू, हैप्पी बर्थडे टू यू.............

पूरा गाना गाते हुए अविनाश ने सिमरन को शुभकामनाएं दीं, और आगे की बात कहता, इससे पहले ही सिमरन ने उसे बीच में रोकते हुए कहा.......

"थैंक यू सो मच अविनाश ! आज तक किसी ने भी मुझे इस तरह से बर्थडे विश नहीं किया । थैंक यू !"

सिमरन..........
इससे पहले की अविनाश आगे कुछ कह पाता, सिमरन ने एक बार फिर बात काट दी,

पता है अविनाश, आज प्रफुल्ल ने मुझे शादी के लिए प्रपोस किया, और उसने एक सरप्राइज़ पार्टी भी दी......,

इतना सुनते ही जैसे अविनाश के कान सुन्न हो गए हों, धड़कने बिलकुल खामोश और आँखों के सामने सबकुछ ओझल सा हो गया, उसने कुछ कहने के लिए अपना मुह खोला, पर उसके रुंधे गले से एक शब्द न निकल सका, उसका दिल अंदर से ही इतनी जोर से चीखा की उसकी गूँज से अविनाश की आँखों का बाँध टूट गया, और उन आँखों से सागर बह निकला.......

"ओके ! थैंक यू अविनाश । अब रखती हूँ प्रफुल बुला रहा है । बाय !!"

इतना कहकर सिमरन ने फोन रख दिया ।
और इधर अविनाश कान में फ़ोन लगाकर अभी भी कुछ कहने की कोशिश कर रहा था, पर उसकी आँखों से पानी के कतरों के तेज़ बहाओ के सामने उसके शब्द बाहर निकलने में असमर्थ थे,
उसके हाँथ सुन्न पड गए और फ़ोन छूटकर ज़मीन पे आ गिरा, एक अँधेरा सा उसकी आँखों के सामने छा गया और वो वहीँ अपनी गाडी के बोनट से टिककर बैठ गया........

तभी अचानक तेज़ रफ़्तार ट्रक के हॉर्न ने अविनाश की अर्धबेहोशि को तोडा और उसे सचेत किया,
उसके बाद अविनाश को अहसास हुआ की उसकी कार सड़क के बीचों बीच खड़ी है, और उसके पीछे लंबा ट्रैफिक जाम लग चूका है ।
वो गाडी में बैठा और तेज़ी से DND टोल रोड की तरफ बढ़ गया, और एक बार फिर ऍफ़ एम् में गाना बजा जिसको सुनकर गाडी से भी तेज गति से अविनाश की आँखों से अंश्रु धरा बह निकली..............

"बस इतना है तुमसे कहना,
बस इतना है तुम से कहना"

यमुना के पुल पर पहुँच के अविनाश ने अपनी तेज़ रफ़्तार गाडी के जोर से ब्रेक मारे, और कुछ क्षण स्टेरिंग से सर टिकाये वहीँ बैठा रहा, ऍफ़ एम् से निकलता संगीत उसके दिल की गहराइयों में उसके जख्म को कुरेद रहा था, एक अनसहे दर्द को वो अपने सीने में महसूस कर रहा था, और उसकी आँखे अब कड़वाहट सी महसूस कर रहीं थी, जब दर्द असहनीय हो गया तो वो तेजी से बाहर निकला,
बाहर अँधेरी रात में उसने ऊपर आसमान की तरफ अपनी नम आँखों से निहारा,
आधा चाँद अपनी चमक से अविनाश के मुरझाये हुए चेहरे की हर एक शिकन पर मुस्कुरा रहा था, और हलकी ठंडी पवन उसकी आँखों की जलन को ठंडक पहुंचाने की नाकाम कोशिश कर रही थी,

आह............!!

एक जोरदार चींख अविनाश के भरे हुए गले से इतनी तेज़ निकली की पुल के नीचे अपने घरौंदों से परिंदे रात में बहार आगये, यमुना का पानी भी लहरों के साथ उफान मारने लगा और आसमान में जैसे बिजली सी कौंध गयी हो ।

उसने अपनी गाडी के टायर पे एक जोरदार लात गुस्से से मारी जिससे उसे खुद चोंट लगी लेकिन वो चोंट उसके दिल के ज़ख्म के आगे कुछ न थी, उसे महसूस तक न हुई,

अविनाश ने अपने कोट की जेब से वो अंगूठी का खूबसूरत डिब्बा निकाला, जिसके ऊपर सुनहरे अक्षरो में लिखा थ,
"फॉर योर लव"

उसने अपनी सारी ताकत इकठ्ठा करके उस डब्बे को एक बार खोला, अंदर अंगूठी पे जडे हीरे पे हसरत भरी निगाह मारी और फिर बंद करके उसे यमुना में फेंक दिया,
उसके बाद चंद क्षण पुल के किनारे लगी रेलिंग से अपनी कोहनी टिकाये खड़ा यमुना के चमकते पानी में सिमरन का अश्क खोजने की कोशिश करता रहा,
और फिर आँखों से लगभग बाहर आ चुके आंसुओं को जबरन अंदर भीचते हुए गाडी का पिछला दरवाजा खोल,
अंदर रखा केक का डब्बा निकाला, उसे खोलकर केक पे लिखा नाम एक बार पूरी हसरत से पढ़ा, जैसे कोई कलमा पढता हो,
और फिर उसे भी यमुना में विसर्जित करने के लिए बढ़ा ही था की किसी ने पीछे से उसके कोट को पकड़कर उसे खींचा,
उसके हाँथ रुक गए, उसने पीछे मुड़कर देखा तो हैरान रह गया ।
एक सात-आठ साल की फूल सी बच्ची खड़ी थी,
फटी हुई फ्रांक, उलझे हुए बाल, और चेहरे पे कुछ कालिख के धब्बे,
पर आँखों में एक सुनहरी चमक (जो उस आधे चाँद की रौशनी में और भी चमक रही थी) लिए, बड़ी ही ख्वाहिशों से अविनाश को देख रही थी,

और अविनाश भी उसको देख के चंद पल के लिये अपने दर्द को भूल सा गया था ।

"अंकल, कुछ खाने के लिए दो न, बहुत भूख लगी है, दो दिन से कुछ नहीं खाया"
बच्ची ने अपने खाली पेट पे जोर डालते हुए अविनाश से गुहार लगायी......

अविनाश पहले तो स्तब्ध रह गया, उसे समझ न आया वो क्या करे,
पहले एक नज़र उसने हाँथ में पकडे हुए केक के डब्बे पे डाली, जिसे वो अपनी जिंदगी से दूर फेंकना चाहता था,
फिर उस बच्ची को देखा जिसके चेहरे पर, उसके आंसुओं द्वारा फैलाई गयी उसके काजल की रेखाएं उसकी मजबूरी और तकलीफ बयां कर रहीं थी,
वो कुछ देर बुत सा बना बस उस बच्ची की शकल देखता रहा.....
फिर अचानक उसने अपने घुटने पे बैठ के उस बच्ची से उसका नाम पूंछा........

बच्ची ने केक की तरफ हसरत भरी निगाहों से देखते हुए कहा....

"सिमरन"

नाम सुनते ही अविनाश की आँखों के सामने आज हुए घटना क्रम का एक चलचित्र सा चल गया, उसके चेहरे पे एक मुस्कान बिखर गयी.....
उसने बड़े ही प्यार से बच्ची के सर पे हाँथ फेर, और उसको उठा कर अपनी कार के बोनट पे बैठा दिया, और कार के अंदर से कुछ मोमबत्तियां निकालकर केक पे लगा दी,
और बड़े ही प्यार से उस बच्ची के नाजुक उँगलियों को चाकू बनाकर उससे केक कटवाया,......
अविनाश के चेहरे पे एक अलग ही ख़ुशी थी, उसका। दिल अब भी भरा था पर वो उस "सिमरन" की वजह से नहीं बल्कि इस छोटी "सिमरन" की वजह से,
उसने अपने हाँथ से "सिमरन" को केक खिलाया, उसकी नाक पे लगाया, और उसको गोद में उठाकर उसके साथ सेल्फ़ी भी खींची, वो अपने सारे दर्द भूल कर मन में संतुष्टि और आँखों में ख़ुशी लिए बस ये सोच रहा था की,......

"जो ख़ुशी मेरे हिस्से में नहीं थी क्यों मैं उसके लिये इस कदर तड़प रहा था, क्यों अपनी आँखों को कड़वाहट से भर रहा था, जबकि असल ख़ुशी तो तो ये है, जिसको मैं हर रोज़ हासिल कर सकता हूँ, जो खुद मुझे ढूंढते हुए मेरे पास आती है,.....
उसकी आँखों से चंद अश्क एक बार फिर बह निकले, लेकिन इस बार इनमे दर्द और तड़प नहीं बल्कि ख़ुशी और गर्व झलक रहा था ।"

इधर सिमरन भी अविनाश की गोद में अपने को महफूज़ और  सहज महसूस कर रही थी,
अब उसका पेट भर चूका था, न सिर्फ खाने से, बल्कि अविनाश के प्यार से,

उसके चेहरे की मुस्कान कड़ी प्रतिस्पर्धा दे रही थी आसमान में उस चाँद को जो मुस्कुरा रहा था धरा पर बिखरती इस पवित्र और अकारण ख़ुशी को !!

© विपिन श्रीवास्तव (सहज़)

Comments

Popular posts from this blog

कानपुर की गलियां

कानपुर की घातक कथाये - भाग 1: “मामा समोसे वाले"

राग दरबारी