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Showing posts from 2017

उजागर

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"उजागर"  PART-1------------------------------------------- एक हमाये यहां पे किरायेदार रहिते है, यहीं घाटमपुर के रहने वाले है, कुछ दिन पहले ही नौकरी लगी है । नाम है उजागर... मतलब कुछ भी अंदर की बात उजागर नही करते है बस नाम उनका उजागर है..... तो हुआ ये कि कल रहा दशहरा तो हमये सबेरेहेन मक्खन मले रहें..... भइया आप बहुत भौकाली लग रहे हो, भइया आप अब शादी कइ लेव... भइया ये, भइया वो.............. (मतलब यही तना सबेरे से हमाये सर खाये रहें) अच्छा शाम होते ही हमाये घर मा सब मेला जने खातिर तैयार होये लगे....... तभी पीछे से ये उजागर भइया अपना अखरोट सा मुह लिये प्रकट भये.. भइया ! ओ बड़े भइया............. (धीरे से अवाज मारे की नाकाम कोशिश करिन) का है उजागर भाई, काहे गज करे हो सुबे से.... (झटिया के हमहू पूछा) अरे भइया हमहू का मेला जाये का है...... (एकदम म्यूट मूड मे कहिन) हम कहा जाओ हियां हमाये पास रामलीला काहे सुना रहे हो...... पर भइया हम हिंया नये हैन, हमका तो रास्तौ नही पता कतो खो-खोवा गये तो मुसीबत हुई जाई... हमहू का अपयें साथ ले चलो... (मुह लटका के कहिन) अब उजागर भाई का झुर...

गुलाबी पतंग की ख्वाहिशें

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गुलाबी पतंग की ख्वाहिशें -------------------------- ------------------ सबेरे सबेरे, उठ के ठंडे पानी से स्नान करके मै कपकपाती हुई पूजा घर मे गई । आज संक्रांति थी तो मैंने भगवान को भोग लगा कर उसमें भी थोडी सी खिचडी और दही बडा खाया । आज बहुत खुश थी........ ठंड का मौसम था तो पूरे परिवार के साथ छत पर चादर बिछाये बैठ गई । बातचीत चल रही थी की तभी मेरी नजर सामने की छत पर पडी जहां कुछ बच्चे, भइया हमका देव, भइया हमका देव, चिल्ला रहे थे । और एक लडके को चारो तरफ से घेरे हुए थे । ध्यान से देखने पर पया कि ये तो सुनील है । सामने वाले गुप्ता जी का लडका........... नजर उठा के देखा तो पाया सुनील की गुलाबी रंग की पतंग आसमान मे हिचकोले खा रही थी, कि तभी एक जोरदार आवाज ने पूरे मोहल्ले में गूंज गई....... वो क्काटा.............. सुनील ने किसी की पतंग काट दी, और छत पर खडे बच्चे जोर जोर से ताली बजा कर उछलकूद करने लगे । मैं उन्हे देखने मे एकदम से रम गई, और टहलते टहलते छत की साइड मे लगी दीवार से सट के खडी हो गई...... "मै सुनील को जानती थी । वो मेरे साथ स्कूल मे पढता था । और जब हम बारहवी मे थे तब हमारे बीच ...

कानपुर का इतिहास

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इतिहास में गुम हो चुका "कानपुर काप्रताप" ------------------------------------------------------------------ दुश्मन की गोलियों को सामना हम करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे कानपुर के फीलखाना स्थित प्रताप प्रेस की लगभग खंडहर में तब्दील हो चुकी इमारत में जोश भरे देने वाले ये शब्द मानो आज भी कानों में गूंज रहे हों। क्रांतिकारियों की आजादी को लेकर तैयार की गई एक- एक रणनीति और गतिविधि का गवाह बना ऐतिहासिक प्रताप प्रेस भवन अपने कठिन दौर से गुजर रहा है। सुनहरे इतिहास के नाम पर  अब यहां पर सिर्फ प्रेस का बंद पड़ा जर्जर दरवाजा ही है। इसके अलावा भवन के आसपास रहने वाले कुछ बुजुर्ग हैं जो भवन और यहां पर इकट्ठा होने वाले क्रांतिकारियों के कुछ किस्सों के बारे में जानकारी रखते हैं. इतिहास के पन्नों में अहम भूमिका प्रताप प्रेस की भारत की आजादी के लिए हुए आंदोलनों में अहम भूमिका रही है। गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप प्रेस की नींव रखी थी। जानकारों के मुताबिक जिस भवन में प्रताप प्रेस चलती थी, उसके मालिक वैद्य शिव नारायण मिश्रा थे। क्रांतिकारी विषयों पर पुस्तकें लिखने के शौकीन शिव न...

भौकाली कानपुर (कृष्णा टावर कांड)

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भौकाली कानपूर (कृष्णा टावर कांड) ============================ 17 अगस्त 2015, सन 1992 में आज का दिन इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा गया था, आज का ही दिन था जब हमाये लल्लन मिश्रा इस दुनिया को प्राप्त हुए थे । और कानपूर शहर में पैदा होकर कानपूर पर ख़ास उपकार किये थे । तो बस आज के ही दिन को उत्पाती बनाने के लिए कान चैम्बर्स के नीचे वाले शेरू चाय वाले की दूकान में सारा नशेबाजी का सामान शाम को 5 बजे ही पहुंच गया रहा, और उस सामान की खुशबु से रज्जन पांडे और भोला यादव भी 6 बजे तक खींचे चले आये और कृष्णा टावर के नीचे वाले चाउमीन के ठेले पे फ्राइड राईस (प्याज जादा) ठूसना चालू किये थे, आखिर पैसा तो लल्लन के खाते में ही जाने थे । खैर ठीक साढ़े छ बजे लल्लन अपनी सेकंड हैण्ड सुपर सपलंडर से बमके, दोपहर को हलकी बारिश हुई थी तो मौसम हालात के हिसाब से और भी रंगीन और अनुकूल रहा। कृष्णा टावर के नीचे वाले नीम के पेड़ के तरे मोटर साइकिल स्टैंड की पूरी कोर कमेटी 36° (माधुरी) का रसपान किये हुए थी और अपने मधुरतम लहराती ध्वनियों से पूरे ग्रीन पार्क चौराहे को मंत्रमुग्ध किये हुए थी । वहीँ क...

जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर पर हुआ हमला

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जब संसद के साथ साथ देश दहल उठा ========================== 13 दिसंबर, 2001 की सुबह के 11 बजे देश की राजधानी दिल्ली के आसमान पर गुनगुनी धूप छाई हुई थी. देश की संसद में विपक्ष के हंगामे के बीच शीतकालीन सत्र चल रहा था. दिसंबर की तेरहवीं तारीख़ सुस्त चाल से आगे बढ़ रही थी. संसद में महिला आरक्षण बिल को लेकर बीते कई दिनों से हंगामा जारी था. संसद परिसर में अंदर से लेकर बाहर नेताओं से लेकर पत्रकार और कैमरामैन बेफ़िक्र अंदाज़ में गुफ़्तगू में व्यस्त थे. संसद में इस समय तक सैकड़ों सांसदों समेत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी मौजूद थीं. और फिर 11 बजकर दो मिनट पर लोकसभा स्थगित हो गई. इसके बाद पीएम वाजपेयी और सोनिया गांधी अपनी अपनी गाड़ियों के साथ संसद से निकल पड़े. संसद से सांसदों को ले जाने के लिए गेटों के बाहर सरकारी गाड़ियों का तांता लगना शुरू हो चुका था. देश के उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत का काफ़िला भी संसद के गेट नंबर 12 से निकलने के लिए तैयार था. गाड़ी को गेट पर लगाने के बाद सुरक्षाकर्मी उपराष्ट्रपति के बाहर आने का इंतज...

कनपुरिया इतिहास

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कनपुरिया इतिहास की प्रतिष्ठा एक इतिहास के रूप में नहीं है. वह मूलत: कथा है और आततायियों को सदा यह यकीन भी दिलाता रहता है कि वह अब तक मूलतः कथा है, भले ही वक्त के थपेड़ों ने उसे इतिहास में नालायक बनाकर छोड़ दिया है. बावजूद इस प्रतिष्ठा के उसे यह खुशफहमी है कि एक इतिहास के रूप में उसकी प्रतिभा वैसे ही असंदिग्ध है— जैसे नेपोलियन की आकृति-विज्ञान में, मेजाफेंटी की भाषाओं में, लॉस्कर की शतरंज में और बुसोनी की संगीत में. कनपुरिया इतिहास वाला कानपुर एक बदसूरत जगह है जहां गलियां हर बरसात में डूब जाती हैं और गंदले पानी में ईंटों को रखकर उन्हें पार किया जाता है. बौछारें छतों को छीन लेती हैं और कीचड़ बारिशों के बाद भी बना रहता है. वह उत्तर प्रदेश का एक ऐसा महानगर है जिसके घूमने लायक हिस्से को एक घंटे में पैदल पूरा घूमा जा सकता है. इसे कभी भारत का ‘मैनचेस्टर’ कहा जाता था. वह मिलों-कारखानों के शोर-शराबे में घटता हुआ परतंत्र भारत का कानपुर था. इसकी अंग्रेजी स्पेलिंग Kanpur नहीं Cownpore थी. तब यहां बहुत सारी मिलें थीं, इतनी कि बहुत सारे मजदूर बिहार और बंगाल ...

कानपुर की गलियां

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"कानपुर की गलियां" ------------------------------ कानपुर की गलियों के बारे में लिखने का मूड बना तो खुद को रावतपुर की क्रासिंग के जाम में फंसा पाया । कहाँ से शुरू करूँ ? जिधर जाऊ उधर गली आगे से मुड़ती है । कहीं कहीं तो बंद गली भी मिलती है । पलटी मारो तो लौट के बुद्धू हुवै पहुंचे जहां से शुरू करीन रहे । "गणेश शंकर विद्यार्थी' इन्ही गलियों में रहा करते थे, और उनका "प्रताप" भी इन्ही क्रांतिकारी गलियों की देंन था । और उन दोनों का अंत भी इन्ही गलियों में हुआ । किधर से शुरू करूँ ? सेंट्रल से निकल कर सीधा भूसा टोली की गली में घुस जाऊं या नइ सड़क होते हुए रोटी वाली गली में । बड़े चौराहे पे राजू की "अधपइ" कड़क कुल्हड़ वाली चाय पीते हुए बनारसी का पान मुह में ठूंसकर कचहरी वाली गली होते हुए गोरा कब्रिस्तान पहुँच जाऊं । गोला घाट में डुबकी लगाकर बाबा "आनंदेश्वर" के दर्शन करूँ, बंद पड़ी "लाल इमली" को आशा भरी नजरों से देखूं और प्रसासन को कोसते हुए लकडमंडी घुस जाऊं । चुन्नीगंज "शनि मंदिर" में मत्था टेकते हुए ग्वालटोली की तरफ...

गंगापार का जालिम प्यार

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गंगापार का जालिम प्यार ----------------------------------- सोमवार का दिन, हम, भोला यादव और रज्जन पांडे तीनो जने परमट वाले बाबा के मंदिर में बम - बम का जाप करे मा जुटे रहेन, तभी "बगड बम बा बम, बम लहरी" की रिंगटोन से हमारा फोन भनभना उठा । निकार के देखा तो स्क्रीन पर माननीय लल्लन मिश्रा का नम्बर लपलपा रहा था, हैल्लो,..... अबे कहां हो बे, जल्दी रज्जन पांडे को लिवाके हमाये घर आओ, लफडा हुई गवा है । लल्लन ने श्रमशक्ती एक्सप्रेस की रफतार मे दुखडा सुनाया और काट दिया । हमने तुरंत रज्जन पांडे और भोला यादव का ध्यान बाबा से हटाकर, लल्लन के दुखडे की ओर घुमाया और दोनो को अपनी सेकेंड हैंड स्टनर मे फिट करके निकल पडे लल्लन के घर....... लल्लन के घर के बाहर पूरे मोहल्ले वाले जमघट लगाये रहें, और एक १०० नंबर घर के बाहर खडी रही । अंदर जाको देखा तो, दुई ठो जवान लल्लन को पकडे लठ्ठ बजाब चालू करे रहें । लल्लन की अम्मा "हाये हमार बच्चा........" का सुरताल ठोके रहीं वहीं पिता जी, लल्लन की पहले से झंड जिंदगी मा और चार चांद लगावे खातिर ओकी मां बहिन सेके रहें । तभी रज्जन पांड...

SHIKSHA SAMAGAM IN KANPUR

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Hey everyone, OPPORTUNITY FOR BBA FINAL YEAR STUDENT.   Educational program in our city @Hotel The Landmark, Kanpur. Chief Guest Prof. PRABAL K. SEN Professor Area of Economics & founding chairperson EDC, XLRI JAMSHEDPUR Date - 23rd Jan 2018 Program is for management students who are preparing for CAT/MAT/XAT Etc. Any MBA entrance. If u are interested and want free passes contact Ayaz Syed *** Limited Period Offer *** WhatsApp no. 9934314699 9532195504 where you can register urself. Free Passes Sponsored By   #Kanpur   Page Event link https://www.facebook.com/ events/1904601976424044/ ?ti=as For More Details Contact Mr Ayaz - 9934314699, 9532195504

राग दरबारी

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श्रीलाल शुक्ल ने हिंदी की क्लासिक किताब ‘राग दरबारी’ लिखी है. जिसमें मज़ेदार ‘वनलाइनर्स’ की भरमार है. जिन्हें मंचों से सुना के जाने कितने शोहदे शायर हो गए. जाने कितने बकैत तुर्रम खान हो गए. चौचक भाषा, बमचक चित्रण. 47 साल पहले लिखी गई थी, आज भी प्रासंगिक है. श्रीलाल शुक्ल यूपी में पीसीएस अफसर थे. बाद में प्रमोट होकर आईएएस हो गए. 25 किताबें लिखी हैं, जिनमें ‘राग दरबारी’ की पॉपुलैरिटी अकाट्य है. अंग्रेजी समेत करीब 15 भाषाओं में इसका अनुवाद हुआ. किताब नहीं पढ़ी हो तो दो छोटे अंश यहां ले आए हैं. हमारी रेकमेंडेशन है, पूरी किताब भी पढ़िएगा. ============================================= थाना शिवपालगंज में एक आदमी ने हाथ जोड़कर दारोग़ाजी से कहा, ‘‘आजकल होते-होते कई महीने बीत गए. अब हुज़ूर हमारा चालान करने में देर न करें.’’ मध्यकाल का कोई सिंहासन रहा होगा जो अब घिसकर आरामकुर्सी बन गया था. दारोग़ाजी उस पर बैठे भी थे, लेटे भी थे. यह निवेदन सुना तो सिर उठाकर बोले, ‘‘चालान भी हो जाएगा. जल्दी क्या है? कौन-सी आफ़त आ रही है?’’ वह आदमी आरामकुर्सी के पास पड़े हुए एक प्रागैतिहासिक मोढ़े पर बैठ गया ...