कन्धा
"क्या यार ! आज से भी जिम नहीं शुरू कर पाया . जिम ज्वाइन करना बहुत जरूरी है . अब तो पेट भी निकलना शुरू हो रहा है . पर क्या करूँ सुबह नींद नहीं खुलती .पर कुछ भी हो जल्दी ही वज़न कम करना है .
अरे ! 9: 25 हो गया ! 20 मिनट मे हर हाल में ऑफिस पहुंचना है .आज तो 10 :05 पर ही कॉन्फ्रेंस कॉल है . मां....!!! जल्दी टिफिन दो यार देर हो रही है .
तभी बैग के बगल में पड़ा मोबाइल आवाज़ देने लगता है . मोबाइल स्क्रीन पर कोई अनजान नंम्बर है . झुंझलाहट बढ़ जाती है . अब कौन है यार .?? साला लोग समझते नहीं कि ये ऑफिस निकने का समय है .पर हो सकता है कोई क्लाइंट ही हो . शायद कुछ धंधा मिल जाये . फ़ोन उठाते ही जो आवाज कानों में पड़ी वो विनय की थी . हद है इसे भी अभी फ़ोन करना था .
तभी बैग के बगल में पड़ा मोबाइल आवाज़ देने लगता है . मोबाइल स्क्रीन पर कोई अनजान नंम्बर है . झुंझलाहट बढ़ जाती है . अब कौन है यार .?? साला लोग समझते नहीं कि ये ऑफिस निकने का समय है .पर हो सकता है कोई क्लाइंट ही हो . शायद कुछ धंधा मिल जाये . फ़ोन उठाते ही जो आवाज कानों में पड़ी वो विनय की थी . हद है इसे भी अभी फ़ोन करना था .
विनय : यानी स्कूल से कॉलेज तक का मेरा सबसे ख़ास दोस्त . वो दोस्त जिसके कंधे सर रख न जाने कितनी बार रोया और जिसकी शर्ट पर पहली बार बियर पी कर उल्टी की . जिस के साथ मिलकर कॉलेज में ज़िंदगी को नचाया . जिसने मेरे हर क्रश को भाभी कह कर बुलाया . शारीरिक रूप से कमज़ोर होने के बाद भी मेरी ख़ातिर बिना डरे सीनियर तक से भीड़ जाने वाला दोस्त विनय . पहली बार जिसके साथ बंक मार के " ये दिल आशिकाना " देखी वो विनय . मेरे लिए चाचा चौधरी से मस्तराम तक जो किराये पर लाया वो विनय . लट्टू से लेकर बाइक तक जिसने नचाना सिखाया वो विनय .
फ़ोन पर विनय बता रहा है उसकी शादी फिक्स हो गयी है और वो ये बताने के लिए कई दिन से मुझे कॉल कर रहा है . पर मैं उसका फ़ोन नहीं उठा रहा था तो उसने नये नंबर से फ़ोन किया है . वो बता रहा है उसकी शादी की डेट 29 नवंबर फिक्स हुयी है . यानी माह का आख़िर . मतलब क्लोजिंग का समय . मतलब छुट्टी मिल पाना नामुमकिन . विनय को खोखले शब्दों में आने का भरोसा दिलवा कर और शाम को बात करने का वादा करके दो पहियों पर सवार हो जिंदगी की दौड़ में शामिल होने के लिए निकल पड़ता हूँ . चौराहे के लाल हरी बत्तियों के बीच हेडफ़ोन से कान तक “तमाशा “ फिल्म के गाने पहुंच रहे हैं . पर मन बार-बार विनय से जुड़ जाता है .
“ बीतता वक़्त है और ख़र्च हम होते हैं “. और इसी ख़र्च होने में हमारे रिश्ते भी कब ख़र्च हो जाते हैं कुछ ख़बर ही कहाँ लग पाती है ? और जब तक ख़बर लगती है हम हो चुके होते हैं सच्चे रिश्तों से दिवालिया .
एक दशक तक शायद ही ऐसा कोई पूरा दिन रहा जो विनय के साथ न गुजरा हो . शायद ही ऐसी कोई शरारत रही हो जो विनय के साथ मिल कर न की हो . अक्सर वो अपनी हकलाती सी आवाज़ में कहता था “ यार तुझ में कुछ बात है .. तू ज़रूर कुछ अलग करेगा . और इसी अलग करने की चाहत में ग़ुरूर से भरा मैं चल पड़ा कभी न ख़त्म होने वाली राहों पर . जिन राहों पर अनगिनत ख़्वाब पाले हम जैसों की भीड़ न जाने कब से चल रही थी . और पीस रही थी अपने ही सपनों के तले .
तुम रुक गये उसी छोटे से कस्बे में अपनी छोटी-छोटी ख़्वाहिशों के साथ. पर मैं बढ़ चला बड़े सपनों की बड़ी सौदेबाजी करने . तुमने अपनी मास्टरी में अपनी सच्ची हंसी बचाए रखी और मैं....!
सोच न यार ! एक दिन में सब कितना बदल जाता है . हम एक दूसरे से इतनी दूर निकल जाते हैं की बरसों तक कुछ मील का फ़ासला तय करके एक दुसरे से मिलने नहीं पहुंच पाते . काश मेरी वो साईकिल मिल जाती जिसके कैरियर पर तुम को बिठा कर पूरा कस्बा घुमाता था . कुछ लोग जो हमारे इतने करीब होते हैं की जिनके बिना जीना बेमानी लगता है , एकदम वो कब छुट गये हम ये जान ही पाते .
और .. एक शाम या रात जब हम अकेले ..किसी सस्ते से बार की आख़िरी टेबल या छत के अँधेरे कोने या कमरे की हल्की नीली रौशनी के बीच ख़ाली होते शराब या कॉफी /चाय के प्यालों के बीच जब हम मिल रहे होते हैं ख़ुद अपने आप से उन्ही पलों में. हम फ़िर खोजते हैं अपने उस दोस्त का कंधा . और कानो में गूंजती है तुम्हारी हकलाती सी आवाज़ “ ..अबे पंडित BC न करो . हम तुमको नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा बे @#%# .. “ और हमारा सर झूल जाता है हवा में और रह जाता है सिर्फ़ वही ख़ालीपन .....
( पर क्या ये खालीपन सिर्फ मेरा है आप का नहीं ?? काश नाम और चेहरे बदल जाने से किरदार बदल जाते !!
@ मृदुल कपिल
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