उजागर

"उजागर"  PART-1-------------------------------------------

एक हमाये यहां पे किरायेदार रहिते है,
यहीं घाटमपुर के रहने वाले है,
कुछ दिन पहले ही नौकरी लगी है ।
नाम है उजागर...
मतलब कुछ भी अंदर की बात उजागर नही करते है बस नाम उनका उजागर है.....
तो हुआ ये कि कल रहा दशहरा तो हमये सबेरेहेन मक्खन मले रहें.....
भइया आप बहुत भौकाली लग रहे हो, भइया आप अब शादी कइ लेव...
भइया ये, भइया वो..............
(मतलब यही तना सबेरे से हमाये सर खाये रहें)
अच्छा शाम होते ही हमाये घर मा सब मेला जने खातिर तैयार होये लगे.......
तभी पीछे से ये उजागर भइया अपना अखरोट सा मुह लिये प्रकट भये..
भइया !
ओ बड़े भइया............. (धीरे से अवाज मारे की नाकाम कोशिश करिन)
का है उजागर भाई, काहे गज करे हो सुबे से.... (झटिया के हमहू पूछा)
अरे भइया हमहू का मेला जाये का है...... (एकदम म्यूट मूड मे कहिन)
हम कहा जाओ हियां हमाये पास रामलीला काहे सुना रहे हो......
पर भइया हम हिंया नये हैन, हमका तो रास्तौ नही पता कतो खो-खोवा गये तो मुसीबत हुई जाई...
हमहू का अपयें साथ ले चलो... (मुह लटका के कहिन)
अब उजागर भाई का झुराई लौकी जैसा मुह हमको भी अच्छा नही लगा.....
अच्छा चलो ! (बेमन से हम भी कह दिये)
परेड हमारे घर से थोडी ही दूर है, तो हम सब लोग (हमारा परिवार और उजागर भाई) पैदल ही निकल्ल लिये...
थोड़ी ही दूर गये थे कि उजागर भाई बहि के पनवाड़ी की दुकान पे पहुंच गये......
और लपक के चाठ्ठो केसर (मसाला) ले लिहिन,
और फिर भागत-भागत हमलोगों को दोबारा ज्वॉइन करिन......
और हाफते हुए एक केसर की पुडिया फाडिन, और सगली फांक गये ।
अच्छा हमलोग परेड पहुंच तो गये पर इतनी भीड भक्कड मे साला कुछ समझे ना आये कि कहां जायें.......
खैर कौनो तरह से धक्का वक्का मार के हमहू रामलीला मंचन के सामने वाली VIP दीर्घा मे पहुच गये ।(हमाये कुछ मित्र कमेटी का हिस्सा है तो कुछ पास हमहू लपक लीन रहा)
हम सब रामलीला का मंचन देख रहे थे कि तभी उजागर भाई कुछ हमरे कान मा गुडगुडाइन......
का है ?( हम खिसिया के पूछे)
मसाला कहां थूकें ? (हमसे इशारे मे पूछिन, काहे मुह मा तो केसर का दम पेले रहें)
कहिं कोना ढूंढ लेव (हम कहा)
खैर पता नही कौन से तंबू को रंग के आये और कहिने लगे, भइया चलो थोड़ा बाहर की झडी ले के आते है, पहिली बार कानपुर का दशहरा मना रहे है,
अच्छा चलो ।(हमारा मन भी हो रहा था घूमने का, पर परिवार के चक्कर मे मन मसोस के बैठे थे )
चाचा हम अभी आते हैं.......... (चाचा को बताकर हम लोग निकल लिये)
हम निकल लिये मेले मे घूमे खातिर,
परेड के पूरे देढ किलोमीटर के सर्कल मे सिर्फ लोग ही लोग नजर आ रहे रहें.....
सबसे पहिले तो उजागर को लेके रावण के पुतले के पास पहुंचे, और प्रणाम किये(पंडित आदमी था भई )
रावणो ससुर उजागर का देख के मुस्कुराइस, जैसे उजागर कौनो दूर के रिश्तेदार हो और बहुत दिन बाद मिले आये होये ।
उजागर के फिर खुजली भई, औ हमाई तरफ देख के फुसफुसाइन.......
भइया ये रावण दाहिनी तरफ चार और बांई तरफ सर पांच कहे होते है ?.......
अबे झंडू, रावण के चाहे बांई तरफ चार सर हो या दांई तरफ, तुमको कौन सी उसकी चंपी करनी है बे !! (हमने मजाकिया लहजे मे कहा)।
नही वो हर जगह अइसे होत है तो पूछ लीना....
(वैसे उसकी जिज्ञासा जायज थी)।
इतने लोगो की भीड मे रावणो बहुत इरिटेटेड लागत रहा......
"आ गये मेरी मौत का तमाशा देखने" (शायद यही कह रहा होगा मन में)।
खैर हम आगे बढे ही थे कि,उजागर कौनो औरत के टक्कर मार दिहिन.. (भीड भक्कड मे हो जाता है)
अब वो औरत चढ़ गई हुक्का पानी लेके उजागर के ऊपर......
काहे आंखे है या बटन, दिखाई नही देता का तुमको ? (दुई ठो चुन्नू मुन्नू सम्हारत भै गुस्से मे चिल्लाई)
माफ कर दो आंटी जी गलती से लाग गा होई.... (उजागर हांथ जोडत भये बोले)
बस यहीं तो कांड हो गया !!!
आंटी जी........?
हम तुमको आंटी लगते है ?........
लोफड कहीं के एक तो पराई औरत का छेडत हो उपर से आंटी बुलावत हो(चप्पल उतारते भये वो उजागर की तरफ बढी)।
उजागर के गाल मा छै नंबर छपे वाला रहा कि बीच मे उस औरत के पतिदेव प्रकट हो गये....
का........
काहे हल्ला मचाये हो ? (वो गंभीर मुद्रा मे पूछिन)
अरे देखो इस लौंडे को एक तो धक्का मारिस ऊपर से हमको आंटी बोल रहा है (एकदम मासूमियत से अपने पती से बोली)
तो एमा का भा भीड भक्कड मे लग जाता है धक्का, इसमे इतना बवाल मचाने की का बात है, और रही बात अंटी बोलने की.......
तो हमाये तीन बच्चो की अम्मा......
तुमको अंटी नही तो का डार्लिंग बोलेंगे लौंडे? .....
(बहुत समझदार और बीवी से खिसियाया हुआ आदमी था बेचारा)
खैर कौनो तरह मैटर सांत भा ।
हमने समझाया.....
सुनो बे उजागर हिंया भीड़ मा जरा सम्भल के चलो, खासकर औरतन और बिटियन से तो बिल्कुल दूरी बना के रखो । समझे....?
चलो अब !!

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