गुलाबी पतंग की ख्वाहिशें

गुलाबी पतंग की ख्वाहिशें
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सबेरे सबेरे, उठ के ठंडे पानी से स्नान करके मै कपकपाती हुई पूजा घर मे गई । आज संक्रांति थी तो मैंने भगवान को भोग लगा कर उसमें भी थोडी सी खिचडी और दही बडा खाया ।
आज बहुत खुश थी........
ठंड का मौसम था तो पूरे परिवार के साथ छत पर चादर बिछाये बैठ गई ।
बातचीत चल रही थी की तभी मेरी नजर सामने की छत पर पडी जहां कुछ बच्चे, भइया हमका देव, भइया हमका देव, चिल्ला रहे थे ।
और एक लडके को चारो तरफ से घेरे हुए थे ।
ध्यान से देखने पर पया कि ये तो सुनील है । सामने वाले गुप्ता जी का लडका...........
नजर उठा के देखा तो पाया सुनील की गुलाबी रंग की पतंग आसमान मे हिचकोले खा रही थी, कि तभी एक जोरदार आवाज ने पूरे मोहल्ले में गूंज गई.......

वो क्काटा..............

सुनील ने किसी की पतंग काट दी, और छत पर खडे बच्चे जोर जोर से ताली बजा कर उछलकूद करने लगे ।
मैं उन्हे देखने मे एकदम से रम गई, और टहलते टहलते छत की साइड मे लगी दीवार से सट के खडी हो गई......

"मै सुनील को जानती थी । वो मेरे साथ स्कूल मे पढता था । और जब हम बारहवी मे थे तब हमारे बीच की मोहब्बत पूरे स्कूल मे मशहूर थी । वो तब भी इसी तरह सामने की छत से पतंग उडाता था, और में हांथ मे किताबें लिये घंटो बैठी उसे निहरती रहती ।
वो बार बार पतंग को जानबूझ कर मेरी छत पर गिरा देता, और हर बार मै उसकी पतंग को अपनी छत से छुडइया देती ।
ये कोई मासूमियत नही थी, बल्की ये हमारे बीज की बातचीत थी जिसका जरिया वो पतंगे बना करती थी, हर बार जब पतंग मेरी छत पर गिरती तो उसमे लिखे होते थे कुछ प्यार भरे अल्फाज, जिन्हे पढकर मै मन ही मन मुस्काती, और अपनी निगाहों की खुराफात से सुनील के दिल मे गुदगुदी भर देती ।
पर किस्मत को शायद हमारा प्यार मंजूर नही था, हालात कुछ ऐसे बने की हमने एक दूसरे से दूरी बनाना ही ठीक समझा ।
और वो पतंग दिन बा दिन मेरी छत का रास्ता भूलती चली गई, या शायद मोहब्बत की वो हवा मेरे घर की ओर दोबारा चली ही नही ।"

आज काफी साल बाद वो गुलाबी पतंग आसमान मे गिलोरे ले रही थी, मै बस उसे देख रही थी और मन ही मन खुश हो रही थी, पता नही आज हवाओ मे कैसा नशा था ,
जैसे मेरा मन भी उडने को कर रहा था ।
सुनील का ध्यान भी अब पतंग की ओर कम और मेरी तरफ जादा था ।
जैसे वो कुछ कहना चाह रहा था, पर संकोच.............
मै चुपचाप दीवार पर कोहनी टिकाये खडी आसमान निहार रही थी,
यू तो आसमान मे अनगिनत पतंगे अपनी अपनी अदायें बिखेर रही थीं पर मेरी नजर तो सिर्फ गुलाबी वाला पर थी, जो एक एक करके दूसरी पतंगो को काट कर सुनील की आंखो को चमका रहीं थी । मुझे लग रहा था जैसे वो पतंग बार बार मेरी ओर आना चाह रही थी, पर हवा के जोर के आगे बेबस थी ।

मै उसकी पतंग को देखने मे इतनी खो गई की, पता ही नही चला कब दो बज गये, पीछे मुडकर देखा तो पाया घर के सभी लोग नीचे चले गये,
अब आसमान भी बिल्कुल साफ हो गया, एक एक करके पतंगे कम हो गई ।
पर वो गुलाबी पतंग अब भी हवाओ का बे फिक्र सामना कर रही हो । मै देख ही रही थी की,
एकाएक हवा ने अपना रुख बदला और हौले हौले से वो पतंग मेरे सर के ठीक ऊपर आ गई ।
मै एक बर सुनील को देखती, फिर एक बार पतंग को,
तभी सुनील ने एक जोरदार खींच मारी और वो गुलाबी पतंग सीधे मेरी छत से आ टकराई,
मैने सोचा अभी सुनील खींच लेगा, पर वो यू ही पडी रही, ।
मैने सुनील की तरफ ख्वाहिशें भरी निगाहो मे देखा, और चुपचाप नीचे चली गई ।
मै चाहती थी उस पतंग को एक बार फिर से छुडइया देना, पर जैसे किसी ने मुझे पकड सा रखा था ।
सुनील ने आशा भरी निगाहो से मुझे नीचे जाते देखा, पर कोई हरकात ना करी ।

मै नीचे तो आ गई पर दिल और दिमाग दोनो उस गुलाबी पतंग मे ही थी, मै कुछ सोच ही रही थी कि तभी मेरे पांव एकाएक छत की तरफ बढ चले.......

ऊपर जाकर देखा तो सुनील अब भी आंखों मे आस लिये खडा था, और वो पतंग यू ही मुरझाई सी पडी थी, जैसे दोनो ही मुझे कुछ कहना चाहते हो ।
मुझसे रहा नही गया, और मैने वो पतंग उठा ली ।
पलट कर देखने पर पाया कि नीले डाट पेन से कुछ लिखा हुआ था,
पढके आंखों मे पानी भर आया, दिल की धडकने मेरे कानो को सुन्न कर गई, और इतने बरसो की पीडा जैसे छिन मे ही हवा हो गई...............

मैने पतंग उठाई और इस बार उसे अपने सीने से चिपका कर फूट फूट के रोई, उसमे लिखे अल्फाज मेरे दिल मे जैसे तीर से चुभ रहे थे।।

पतंग पर लिखा था.........

"तुम्हे हमसे नाराजगी है ये तो मै जानता हूं पर इस कदर भी क्या नाराज होना कि दिल के दरवाजे के साथ साथ अपने घर की तरफ बहती हवा भी बंद कर दिया । कितनी दफा ये पतंग उडाई पर कभी तुम्हारे घर की तरफ को हवा ही ना चली । गर मिले कभी ये पतंग तो सीने से लगा लेना, सोचेंगे सारे गिले शिकवे खतम हो गये"

सुनील भी अब नम आंखो मे प्यार की चमक लिये मुस्कुरा रहा था ।
और अब मै पतंग सी मोहब्बत की बहती हवा मे गोते लगा रही थी ।

(काल्पनिक)

© - विपिन श्रीवास्तव

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