गंगापार का जालिम प्यार
गंगापार का जालिम प्यार
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सोमवार का दिन,
हम, भोला यादव और रज्जन पांडे तीनो जने परमट वाले बाबा के मंदिर में बम - बम का जाप करे मा जुटे रहेन,
तभी "बगड बम बा बम, बम लहरी" की रिंगटोन से हमारा फोन भनभना उठा ।
निकार के देखा तो स्क्रीन पर माननीय लल्लन मिश्रा का नम्बर लपलपा रहा था,
हैल्लो,.....
अबे कहां हो बे, जल्दी रज्जन पांडे को लिवाके हमाये घर आओ, लफडा हुई गवा है ।
लल्लन ने श्रमशक्ती एक्सप्रेस की रफतार मे दुखडा सुनाया और काट दिया ।
हमने तुरंत रज्जन पांडे और भोला यादव का ध्यान बाबा से हटाकर, लल्लन के दुखडे की ओर घुमाया और दोनो को अपनी सेकेंड हैंड स्टनर मे फिट करके निकल पडे लल्लन के घर.......
लल्लन के घर के बाहर पूरे मोहल्ले वाले जमघट लगाये रहें, और एक १०० नंबर घर के बाहर खडी रही ।
अंदर जाको देखा तो, दुई ठो जवान लल्लन को पकडे लठ्ठ बजाब चालू करे रहें ।
लल्लन की अम्मा "हाये हमार बच्चा........" का सुरताल ठोके रहीं वहीं पिता जी, लल्लन की पहले से झंड जिंदगी मा और चार चांद लगावे खातिर ओकी मां बहिन सेके रहें ।
तभी रज्जन पांडे ने अपनी वकालत की डिग्री का पहली बार इसतेमाल किया, और लल्लन को जवानो से छुडाया।
मामला का है ? पूछने पर पता चला की लल्लन की प्रेमिका अपने घर से भाग गई है, और लौंडिया के मामा ने लल्लन के ऊपर नामजद रिपोर्ट करी है ।
अब लल्लन को जब लठ्ठ के दर्द से कुछ राहत मिली और पिछवाडे का ऱक्त फिर से रगों मे दौडने लगा तो उन्होने अपना दुखडा रोना चालू किया...........
"अरे हमाये पास नही आई है, हमसे तो लडाई चल रही है, और चार दिनो से हमने फोन पे बतियाया भी नही है ।
हमको का पता कहिके साथ भागी,
लल्लन का राग रुदल सुने के बाद जवानो ने चार घंटे की मोहलत दी, कि अगर चार घंटे के अंदर लौंडिया समेत ग्वालटोली थाने मे ना हाजिर भये, तो अपहरण का केस लगाके घरवालों समेत ससुराल पहुंचा देंगे ।
पुलिस के जाये के बाद लल्लन का दिमाग झंड पड गा, और लगे लौंडिया की माका नाका करने,
बाप को समझावन घुट्टी पिला के बाहर आये और चौरसिया की दुकान से सबसे पहले कमला की खुराक हम चारों ने भरी, और ओके बाद लगे पूरे कानपुर मा अपनी गंगापार वाली भौजी को खोजी कुकुर हस ढूंढने.......
भौजी का फोन तो लल्लन की पहुंच से बाहर ही रहा हमेशा, पर फिर भी,
हियां फोन, हुआ फोन मतलब वा दिन लल्लन ने अनिल अंबानी की लाटरी लगा दी रही फोन कर कर के,
लल्लन की हालत देखते ही सब समझ जात रहें की लौंडे की फट के फ्लावर हुई पडी है,
खैर तीन घंटा पूरे कानपुर की धूर फांके को बाद भी हमको हमाई गंगापार वाली भौजी नही मिली, और खजरहे कुकुर हस मुह बनाये हमाई पल्टन सीधा ग्रीन पार्क चौराहे पहुंची।
अब इस भयानक पीडा का सिर्फ एक ही उपाय नजर आया, और वो था दोपहर के तीन बजे 8PM की घुट्टी ।
राजू चाय वाले की दुकान के पीछे लगी बेंच मा बैठ के
बोतल खोली गई, दो दो पैग ठकोले को बाद गंगापार वाली भौजी का चरित्र चित्रण लल्लन मिश्रा के श्री मुख से होने लगा ।
रुंधा हुआ गला लेके लल्लन बाबू अपनी किस्मत का रं@# रोना मचाये थे, कि तभी "जा बेवफा जा" कि रिंगटोन लल्लन बाबू को फोन मा बजी, और सामने रखा पैक गर्दन से उतारते भय लल्लन ने फोन उठाया........
फोन के उस पार से गंगापार वाली भौजी की फटे बांस जैसी सुरीली आवाज आई,
लल्लन ने बिना कुछ सुने पहिले तो भौजी की मां बहन सेक दी, वहिके बाद पता नही कौन सा नदिया के पार वाला प्रेम फूटा कि लगे गला फाड के रोये,,.......
लल्लन का रोना भोला यादव सहन ना कर सके, लगे पैग पे पैग बनाने, भोला पैग बनाते और लल्लन बाबू रोते रोते डकार जाते,......
रोना धोना हो ये के बाद पता लाग की भौजी घर से भाग के रेल बजार मा एक सहेली के हियां डेरा जमाये है।
हमने फिर चारन का अपनी गाडी मे फिट किया और पहुंच गये रेल बजार,
भौजी एक खस्ताहाल मकान के बाहर हमारा इंतजार करती भई मिली,
खूनी लाल रंग का सलवार सूट और हरे रंग के बाडर वाली चुन्नी मे एकदम समाजवादियों का पोस्टर नजर आ रही थी, एक हांथ मा काले रंग की वि आई पी की अटेची और दूसरे मा एक ठो बैग.....
पूछे पे बताया कि लल्लन खातिर सब छोड के चले आये हैं पर लल्लन के गुस्से के डर से सहेली के यहां रुके रहेन ।
भौजी को देखके लल्लन की जान मा जान आई, पर इससे पहिले की कुछ बोल पाते, लल्लन का फोन फिर से गला फाडे लगा,
य बार बाप का फोन रहा, उठायें पे पता चला की लल्लन का पूरा परिवार ग्वालटोली थाने मे खातिर करवा रहा है, और लल्लन को विशेष सेवा खातिर तुरंत बुलाया है ।
हमने तुरंत गंगापार वाली भौजी और लल्लन के खातिर टैंपो बुक करी, और दोनो को तुरंत ग्वालटोली थाने के लिये रवाना कर दिया । और पीछे पीछे हम भी गोल्ड फ्लेक के सुट्टा मारते भय चल पडे......
थाने पहुचने पर देखा की लल्लन का ममिया ससुर दरोगा के कान मे अंट शंट बकैती पेल रहा था, एक कोने मा लल्लन का बाप अपनी चार छेद वाली तीन साल पुरानी बनियान और लुंगी लपेटे खडा है, और एक कुर्सी मा लल्लन की अम्मा दहाडे मार रही हैं
पहिले तो लल्लन को लौंडिया के साथ देखते ही दरोगा ने कान के नीचे रसीद दिया, और लल्लन का सारा नशा हवा हुई गा।
फिर लौंडिया से सवाल जवाब चालू किया,
पर भौजी ने पहली बार लल्लन से वफा निभाते भय ओके ऊपर लगे इल्जाम नकार दिये, और अपने आप घर छोड के आने की बात कबूल करी ।
सब कुछ सेट होये के बाद भी दरोगा बाबू ने लल्लन को मारे कंटाप की कीमत वसूली, और हजार हजार के पांच नोट ले के मामला हवा कर दिया ।
लल्लन ने लौंडिया के मामा को एक किलर लुक देते भय कसम खाई कि अब कभी गंगापार वाली भौजी से नही मिलेंगे।
और अम्मा बप्पा संग निकर गये.........
हमने भी थाने के बाहर आके सामने चौराहे पर लगी बिरियानी के ठेले पे अपनी बची कुची बोतल से निचोड के रसपान किया, और निकल पडे अपने अपने घर को ।
©-विपिन श्रीवास्तव (#बकlol)
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