जब दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर पर हुआ हमला
==========================
13 दिसंबर, 2001 की सुबह के 11 बजे देश की राजधानी दिल्ली के आसमान पर गुनगुनी धूप छाई हुई थी.
देश की संसद में विपक्ष के हंगामे के बीच शीतकालीन सत्र चल रहा था. दिसंबर की तेरहवीं तारीख़ सुस्त चाल से आगे बढ़ रही थी.
संसद में महिला आरक्षण बिल को लेकर बीते कई दिनों से हंगामा जारी था.
संसद परिसर में अंदर से लेकर बाहर नेताओं से लेकर पत्रकार और कैमरामैन बेफ़िक्र अंदाज़ में गुफ़्तगू में व्यस्त थे.
संसद में इस समय तक सैकड़ों सांसदों समेत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी मौजूद थीं.
और फिर 11 बजकर दो मिनट पर लोकसभा स्थगित हो गई. इसके बाद पीएम वाजपेयी और सोनिया गांधी अपनी अपनी गाड़ियों के साथ संसद से निकल पड़े.
संसद से सांसदों को ले जाने के लिए गेटों के बाहर सरकारी गाड़ियों का तांता लगना शुरू हो चुका था.
देश के उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत का काफ़िला भी संसद के गेट नंबर 12 से निकलने के लिए तैयार था.
गाड़ी को गेट पर लगाने के बाद सुरक्षाकर्मी उपराष्ट्रपति के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे थे.
सदन से बाहर निकल रहे नेताओं और पत्रकारों के बीच बातचीत तत्कालीन राजनीति से जुड़ी अनौपचारिक बातचीत का दौर जारी था.
11 बजकर तीस मिनट से ठीक पहले उपराष्ट्रपति की सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मी उनकी सफेद एम्बैसडर कार के पास खड़े उनके आने का इंतज़ार कर रहे थे.
तभी DL-3CJ-1527 नंबर की एक सफ़ेद एम्बैसडर कार तेजी से गेट नंबर 12 की ओर बढ़ती है. कार की रफ़्तार संसद में चलने वाली सरकारी गाड़ियों से कुछ ज़्यादा तेज थी.
कार की रफ़्तार देखकर संसद के वॉच एंड वॉर्ड ड्यूटी में तैनात जगदीश प्रसाद यादव आनन-फानन में निहत्थे इस कार की और दौड़ पड़े.
ये उस दौर की बात है जब लोकतंत्र के मंदिर यानी देश की संसद में हथियारबंद सुरक्षाकर्मियों के तैनात होने का चलन नहीं था. संसद की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों को पार्लियामेंट हाउस वॉच और वॉच स्टाफ़ कहा जाता था.
जगदीश यादव भी इसी टीम का हिस्सा थे और वह भी किसी अनहोनी की आशंका होते ही कार की ओर दौड़ पड़े. उनको भागता देख दूसरे सुरक्षाकर्मी भी कार रोकने के लिए कार की ओर लपके... और इसी बीच ये सफेद एम्बैसडर कार उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत जी की कार से टकरा गई.
उपराष्ट्रपति कृष्ण कांत की कार से टकराने के बाद चरमपंथियों ने अंधाधुंध फ़ायरिंग शुरू कर दी. चरमपंथियों के हाथों में एके 47 और हैंडग्रेनेड जैसे उन्नत हथियार थे.
संसद परिसर के अलग-अलग हिस्सों में मौज़ूद लोगों ने गोली की आवाज़ सुनते ही तरह-तरह के कयास लगाने शुरू कर दिए. कुछ लोगों ने सोचा कि शायद नज़दीकी गुरुद्वारे में किसी ने गोली चलाई है या कहीं आसपास पटाख़ा फोड़ा गया है.
लेकिन गोली की आवाज़ सुनते ही कैमरामैन से लेकर वॉच एंड वॉर्ड टीम के सदस्य आवाज़ की दिशा की ओर जाने लगे. ये जानना चाहते थे आख़िर माज़रा क्या है.
संसद परिसर में चरमपंथियों के हाथों में मौजूद ऑटोमैटिक एके-47 बंदूकों से निकली गोलियों की तड़तड़ाहट सुनते ही नेताओं समेत वहां मौज़ूद लोगों के चेहरे सन्न रह गए.
सदन के अंदर से लेकर बाहर एक अफ़रातफ़री का माहौल था. किसी को भी ठीक-ठीक नहीं पता था कि क्या हो रहा है. सभी अपने-अपने स्तर से घटना को समझने की कोशिश कर रहे थे.
इस समय सदन में देश के गृह मंत्री लाल कृष्ण आडवाणी और प्रमोद महाजन समेत कई दिग्गज़ नेता मौजूद थे लेकिन किसी को भी नहीं पता था कि आख़िर हो क्या रहा था.
संसद परिसर में पहली गोली की आवाज़ के बाद ही सनसनी फैल गई. इस वक्त तक संसद में संसदीय मामलों के मंत्री प्रमोद महाजन, नज़मा हेपतुल्ला और मदन लाल खुराना जैसे दिग्गज़ नेता मौजूद थे.
उपराष्ट्रपति की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों और चरमपंथियों बीच संघर्ष के दौरान सुरक्षाकर्मी निहत्थे मातबर सिंह ने अपनी जान पर खेलकर गेट नंबर 11 को बंद किया.
चरमपंथियों ने मातबर सिंह को हरकत में आते देख ही उन पर गोलियां बरसा दीं.
लेकिन इसके बावजूद सिंह ने अपने वॉकी-टॉकी पर अलर्ट जारी कर दिया जिसके बाद संसद के सभी दरवाजों को तत्काल बंद कर दिया गया.
इसके बाद चरमपंथियों ने संसद में घुसने के लिए गेट नंबर-1 का रुख किया.
गोलियां चलने के बाद सुरक्षाकर्मियों ने गेट नंबर 1 के पास मौज़ूद लोगों को नज़दीकी कमरे में छिपा दिया और चरमपंथियों का सामना करने लगे. इस वक्त तक देश भर में टीवी के माध्यम से ये ख़बर फ़ैल चुकी थी कि देश की संसद पर हमला हो चुका है.
लेकिन देश के नेताओं के सकुशल होने की ख़बर किसी के पास नहीं थी. क्योंकि जो पत्रकार सदन परिसर के अंदर मौजूद थे उन्हें सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों से जुड़ी किसी तरह की जानकारी नहीं दी जा रही थी.
इस सबके बीच चरमपंथियों ने संसद भवन के गेट नंबर वन से सदन में घुसने की कोशिश की. लेकिन सुरक्षाबलों ने एक चरमपंथी को वहीं मार गिराया.
इस प्रक्रिया में चरमपंथी के शरीर में बंधी हुई विस्फोटक की बेल्ट में धमाका हो गया.
इसके बाद चारों चरमपंथियों ने गेट नंबर 9 की ओर रुख किया. इस दौरान तीन चरमपंथियों को मार दिया गया. पांचवें चरमपंथी ने गेट नंबर 5 की ओर दौड़ कर संसद में घुसने की लेकिन सुरक्षाबलों ने उसे भी मार दिया.
देश की संसद की सुरक्षा में लगे सुरक्षाकर्मियों और चरमपंथियों के बीच तकरीबन साढ़े 11 बजे सुबह से शुरू हुआ ये ऑपरेशन तकरीबन शाम चार बजे तक चलता रहा.
इसके बाद शाम चार से पांच बजे के आसपास सुरक्षाबल भारी संख्या में संसद पहुंचे और पूरे क्षेत्र की छानबीन करनी शुरू कर दी.
इस हमले में दिल्ली पुलिस के पाँच सुरक्षाकर्मी, केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल की एक महिला सुरक्षाकर्मी, राज्य सभा सचिवालय के दो कर्मचारी और एक माली की मौत हुई.
भारतीय संसद पर हमले के मामले में चार चरमपंथियों को गिरफ़्तार किया गया था.
बाद में दिल्ली की पोटा अदालत ने 16 दिसंबर 2002 को चार लोगों, मोहम्मद अफज़ल, शौकत हुसैन, अफ़सान और प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी को दोषी करार दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रोफ़ेसर सैयद अब्दुल रहमान गिलानी और नवजोत संधू उर्फ़ अफ़साँ गुरु को बरी कर दिया था, लेकिन मोहम्मद अफ़ज़ल की मौत की सज़ा बरकरार रखी थी और शौकत हुसैन की मौत की सज़ा को घटाकर 10 साल की सज़ा कर दिया था.
इसके बाद 9 फरवरी, 2013 को अफ़ज़ल गुरु को दिल्ली की तिहाड़ जेल में सुबह 8 बजे फांसी पर लटका दिया गया .
Comments
Post a Comment