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Showing posts from November, 2017

फिल्मी चक्कर (म्यूजिकल चिरेंध)

फिल्मी चक्कर (म्यूजिकल चिरेंध) .---------------------------------------- वन्स देयर वाज क्यूट से लल्लन मिश्रा। वन डे अम्मा बोलिन कि जाओ बहन का एग्जाम फॉर्म सबमिट कर के आओ,बड़ी खुशी खुशी तैयार हो गये बाबू जी,  गर्ल्स कॉलेज में जाने का बहाना जो मिल गया, कॉलेज मॉल रोड में था, अपनी सेकंड हैण्ड सुपर स्प्लेंडर फड़फडाइन् और पहुँच गए, गेट पर देखा बड़े बड़े अक्षरों वाला साइन बोर्ड लगा था "जुहारी देवी प्राविधिक महिला महाविद्यालय, कानपूर" हम्म तो यही है कॉलेज ? खुद से पूछिन........  'क्या ख्याल है भीतर चलें' जवाब मिला 'नेकी और पूछ पूछ', तो यूँ की भीतर दाखिल भी हो लिए , पर पहले ही कदम से घिग्गी बंध गई उनकी, एक साथ इत्ती सारी लड़कियां......टीवी के अलावा पहली बार देख रहे थे, साक्षात आमने सामने, मन किया कि छू के देखें कहीं असली है भी के नहीं, पर रहेपटा खाने का भी मन नहीं था सो चुपचाप चल पड़े अंदर की ओर, अचानक एक करंट फ्राइड मिश्री जैसी आवाज़ कानो में पड़ी,  'ओ हेल्लो, हाँ ! किधर चल दिए, मुँह उठा के' नजर इधर उधर घुमाईन, दिमाग फटाफट केलकुलेशन में जुट गया था कि इ...

कनपुरिया लब

कनपुरिया लब चैप्टर.1....  मेरे चाचा के लड़के की शादी थी। रात के करीब दस बज रहे थे, मैं चुपचाप मैरिज हाल की छत पर खड़ा होकर लल्लन का़ इंतजार कर रहा था वो घनघोर ठंडी बियर लेने गया था। बीच-बीच मे व्हाट्सअप पर आये हुए मैसेजों का जवाब भी देता जा रहा था। तभी सीढ़ियों से किसी के आने की आहट सुनाई दी, मेरे कान खड़े हो गये, निगाहें एकाएक सीढ़ियों की तरफ हो गईं, मोबाइल पर टाइप करती उंगलियां थम गईं और................ हल्के आसमानी रंग के सूट में वो लड़की छत पर आई, गोल बड़ी-बड़ी काली आँखें, लम्बी सी नाक, गुलाब की पंखुडियों को डाइटिंग मे टक्कर देते पतले होंठ, कोमल कानों के किनारे बड़ी ही शालीनता से खोंसी हुई जुल्फें, एक हाथ में सैमसंग j5 फोन, दूसरे में छोटा सा हैंड बैग । आते ही उसने हमें पूरी तरह से इग्नोर करा, और बड़ी ही बैसब्री से उसकी आँखें छत के चारों तरफ कुछ ढूंढने लगीं। क्या आप किसी को ढूंढ रहीं हैं? Can I help you? हमने बड़े ही तरीके से उससे पूछा। Actually मैं वाशरूम ढूंढ रही हूं, वो मेरी चुन्नी में थोड़ी सी कॉफी गिर गई है तो........... Oh I see.....मैंने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा, और...

चल भाई

चल भाई चलते हैं, फिर से वही चलते हैं, जहां हर घर के बरांडे पर बचपन इकठ्ठा रहता था, जहां घर में लगे नल से अर्थ का तार लगता था, जहां पापा के चेतक पे दोनों भाई बेठ के हैंडल घुमाते थे, तू किक मारता था और मैं क्लच दबा देता था, जहां स्कूल जाने के नाम पे तू घिसटता हुआ गेट तक जाता था, और मुझे बड़ा है समझदार है कहके स्कूटर के पीछे बिठा दिया जाता था, जहां कपड़े सिर्फ मेरे लिए नए आते थे और छोटे हुए कपड़े तुझे मिलते थे, जहाँ तू डर की वजह से माँ के साथ ही सोता था, और मेरा खटोला अलग से बिछता था, जहां १ रुपये में दोनों भाई पूरी दूकान खरीद लाते थे, जहां १ बाल्टी पानी एक दूसरे पे उड़ेल के नहाते थे, जहां पतंगों के पेंच साम दाम दंड भेद से लड़ाते थे, जहां मोहल्ले के मैच में दोनों भाई नाम कमा के आते थे, जहां तू और मैं गोविंदा के गाने गाते थे, माँ की बनायी आखिरी छोटी रोटी लड़ के खाते थे, चल भाई चलते हैं, फिर से वही चलते हैं, जहां अपने सारे रिश्ते नाते थे

ये कानपुर है मेरी जान !!!!

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यहाँ लोग एक दूसरे से मजाक नहीं बल्कि चिकाई-तफरी करते हैं !!!  यहाँ के लोग कहीं जाने के लिये टेम्पो या ऑटो नहीं, बल्कि "विक्रम" पकड़ते है !!!  यहाँ थप्पड़ या तमाचा नहीं बल्कि "कंटाप" पड़ता है !!!  यूपी का इकलौता ऐसा शहर जो साल में दो बार होली खेलता है !!! यहाँ जब खोये से भरी गुझिया चाशनी में डूबकर बाहर निकलती है, तो न चाहते हुये भी दिल इश्क जैसी लालच में डूब जाता है !!!! जो काम बड़ी से बड़ी रिश्वत से नहीं होता है, वही काम यहाँ पर बस एक "मसाले" की पुड़िया से हो जाता है !!!!  यहाँ 80 फ़ीट की रोड है और 7 रास्तों वाला बड़ा चौराहा, यहाँ भीष्म ने सरसैया ली थी, और यहीं के डीएवी से पढ़े थे अटल जी और कोविंद जी !!!! यहाँ जनरलगंज है और कलक्टरगंज है !!!!  हाँ !! कलक्टरगंज से याद आया, यहाँ लम्बी लम्बी छोड़ने को "झाड़े रहो कलक्टरगंज" कहते हैं !!!!  बकैती और भौकाल में ये शहर आज भी नम्बर वन है और जब काण्ड होता है तो यहाँ ईंट पत्थर नहीं बल्कि "अद्धा गुम्मा" चलता है !!!  यहाँ शान को शान नहीं बल्कि बड़ी ही ठसक के साथ "रंगबा...

बहुत जल्द मै अपनो से मिलूंगा ?

"बहुत जल्द मै अपनो से मिलूंगा ?" _________________________________________ हैल्लो...... हां मां ! मै बोल रहा हूं, राकेश..... हां बेटा कैसा है तू, कितने दिन हो गये तेरी आवाज सुने हुए,, राकेश कां मां की पथरीली आँखों मे अचानक चमक सी आ गई, करीब महीने भर बाद वो अपने लाडले बेटे की आवाज सुन रही थी । दरअसल राकेश तीन महीने पहले ही CRPF मे भर्ती हुआ था, और पहली पोस्टिंग मे ही उसे छत्तीसगढ के नक्सली बहुल छेत्र मे पोस्टिंग मिली थी, जंहली एरिया होने की वजह से महीने मे एक आधा बार ही घर फोन कर पाता था । मां, मै अगले हफ्ते घर आ रहा हूं, मेरी छुट्टी मंजूर हो गई है........ आंखों मे घर और गांव की यादें लिये राकेश ने फोन पर मां को खुशखबरी दी । हैल्लो भइया.........कैसे हो आप, आपकी बहुत याद आती है, कब आ रहे हो आप ? बताओ ना ? छुटकी (राकेश की छोटी बहन) ने मां के हांथो से फोन छुडाया और खुशी के नैरो ढेरों सवाल उसके मन से निकलते गये....... बहुत जल्द आ रहा हूं छुटकी, तू कैसी है, अब तो तू ग्यारहवीं कच्छा मे पहुंच गई होगी । बता तो तेरे लिये क्या लेके आऊं ? बहन की पढाई की प्रगति सोंच कर राकेश क...

कनपुरिया लौंडा

चेहरे पे दाढ़ी, मुह में कमला पसंद दबाये हुए, टेढ़े मेढ़े स्टाइल वाले बिना तेल लगे बाल, आवाज में भारीपन, ब्रांडेड कपडे, पैरो में ब्रांडेड फुटवेअर, हाथ में स्मार्ट फ़ोन,साथ में दो यार और तशरीफ़ के नीचे पॉवर बाइक । यही होता है न कनपुरिया लौंडा ? नहीं ये तो सिर्फ उसकी पहचान है, मैं बताता हु कनपुरिया लौंडा कैसा होता है........ वो सुबह उठकर अपनी माँ का चेहरा सबसे पहले देखना चाहता है, बाप से फटती तो है उसकी पर बिना उनकी इज़ाज़त कुछ नहीं करना चाहता है । गर्लफ्रेंड से प्यार तो जबर करता है, पर सबसे पहले हाल अपने दोस्तों का पूछता है । रिस्तेदारियो में भले ही ना जाता हो, पर मोहल्ले वालो की हर तकलीफ में सबसे आगे खड़ा होता है । कमाता भले न हो, पर रक्षा बंधन पर बहन को गिफ्ट देने के लिए महीनो पहले से पैसा जोड़ने लगता है । लड़ाई झगड़ा चाहे जितना कर ले, लेकिन टीवी पर इमोसनल पिक्चर देखते समय चुपके से आंसू पोछ लेता है, गाली गलौच की चाहे जितनी आदत हो, पर घर में "अबे" तक न निकलता उसके मुह से, अंदर से कमीना तो बाहूत होता है, पर घर में टीवीें पर अश्लील गाने आते ही चैनल बदल देता है । वो सर्दियो में चार...

मिलो कभी

"मिलो कभी" -------------------------------------- मिलो कभी, फिर उसी शहर की संकरी गलियों में, वहीँ जहाँ से रास्ता जाता है चूड़ियों के उस तंग बाजार को, चेहरे पर वही मुस्कराहट लेकर मिलो कभी। वही मुस्कराहट जिसे देखकर खुशियो की आँखें भी चमक जाये, वही मुस्कराहट जिसे देखकर जीने की ख्वाहिश बढ़ जाये, हाँ वही टूटते तारो सी खूबसूरत बातें लेकर, मिलो कभी, बातें जो सुकून देती हैं मेरे कानो को, वही बातें जिनका न मतलब हो, न निकालने को जी करे, मिलो कभी, उन समंदर सी गहरी नीली आँखों में चमक लिए, जिनमे मेरा, सिर्फ मेरा अश्क नज़र आता हो, जिनके उठते ही जीवन रोशन सा हो जाता है, वो कानों के पास अठखेलियां करती तुम्हारी रेशमी सी जुल्फें, जैसे दो बच्चे आपस में ठिठोली कर रहे हों, अपनी उँगलियों से उन जुल्फों को कानो के पीछे फसाते हुए, मिलो कभी, तुम्हारा दुपट्टा जो किसी बादल सा लहराता है, समंदर की लहरों सा जो कभी सरक सा जाता है, बेपरवाही से संभालते हुए उस उड़ते दुपट्टे को, मिलो कभी, छन-छन-छन सी छनकती पाज़ेबों को चुप कराते हुए, मिलो कभी............... --- विपिन श्रीवास्तव

अखण्ड कुँवारापन

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अखण्ड कुँवारापन --------------------- हमाये लल्लन मिश्रा(गंगा पार वाले) पहली बार किसी लड़की को देखने अम्मा और दीदी के साथ .... कानपुर देहात गए। लड़का गंगापारी है पहले ही खबर थी उन सब को ........  वहाँ पता चला कि लगभग अधिकतर व्यंजन लड़की ने अपने हाथों से बनाये थे और बेचारी सुबह से ही किचन के कामों में लगी पड़ी थी ... वो खूबसूरत थी और मेहनती भी ... देखकर लल्लन की बांछें खिल गयीं औऱ खाना भी स्वादिस्ट...... खाते वक्त बातों बातों में वो पूछ बैठी - कउन सा डिस ज्यादा पसंद है आपको? ई मिश्रामुख से निकला- टाटा स्काई ।। उ भनभनाते हुए उठकर चली -इतना मर मर के सुबह से चूल्हा में झोंक दिए खुद को ... भइया गंगापार वाले बाबू है इनके खाने में कउनो डिस की कमी न हो .... और बाबू साहब को टाटा अस्काई......... भक्क नही करेंगे शादी बिआह ई बौराहा बौरावन से .... जाओ अब जाकर करो बिआह अब टाटे अस्काई से ।। बस आधे खाने में ही उठकर हाथ धोना पड़ा और उ लड़की से भी.... रास्ता में खामोशी तोड़ने के लिये अपनी सफाई में अपनी दीदी से बोले ..... समझ नही आया की कानपुर देहात नाम रखकर कानपुर वाले अभी भी बाहरी लोगों को ...

अपना कानपुर

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"चाहे कर लो दुनिया टूर । अई ग़जब है अपना कानपुर ।।" कानपुर शहर में हमारा दिल बसता है और हमारे दिल में अपना शहर बसता है।इस शहर को देखकर यकीन होता है कि मुफलिसी भी जिन्दादिली को रोक नहीं सकती। ख़ुशी से लबरेज रहने के लिए भौतिकता व आडम्बर से भरी सम्पन्नता कोई मायने नहीं रखती ।कुछ ऐसी मजेदार वजहे हैं, जो इस शहर को हरदिल अजीज बनाती हैं - 1. कभी यहाँ महिला महाविद्यालयों के बाहर सजे संवरे युवा लड़को को देखिये। परीक्षाओं में सदैव देर से पहुँचने वाले ये लड़के पूरी मेहनत से ब्रम्ह मुहूर्त में उठ कर तैयार होकर अवलोकित स्थलों पर समय से पूर्व ही तैनात हो जाते है। इनके पास उधार का एक दोपहिया वाहन होता है, जिसमे बीस रूपए का पेट्रोल होता है। इनके पास डायरी के आकार का एक मोबाइल भी होता है जो तीन सिम से युक्त परन्तु टॉकटाइम से मुक्त होता है। (मगर अब अम्बानी भैया की दया से सब ऑनलाइन हो गए हैं) मजाल है कि कभी कोई कन्या सार्वजानिक वाहन के इन्तजार में खड़ी रहे। ये युवा अपनी पढाई, आराम ,कैरियर आदि की तिलांजलि देकर कन्या को गंतव्य स्थल तक छोड़ने की जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हैं।...

जिंदगी

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जिंदगी बात उन दिनो की है जब हम, लल्लन मिश्रा और पप्पू पांणे बहुत तगडे वाले मित्र रहेन । हम डि ए वी इंटर कालेज मा छठी मा पढत रहेन और कौनो भी कांड होय तो हमाय तीनो का नाम सबसे पहिले लिया जात रहा । हमाई दोस्ती खाली स्कूल तक ही सीमित नही रही बल्की स्कूल के बाहर भी लफंडरी मे हमारा कोई तोड नही रहा । कभी शुक्ला के लौंडे की साइकिल की हवा निकालना, तो कभी चौरसिया की गुमटी मे लगे पोस्टर उखाड के भाग जाना, ...... स्कूल मे मिलने वाली खेल सामाग्री का दुरुपयेग तो हम तिनोन से बेहतर कौनो माई का लाल करेन नही सकत रहा । और यही चक्कर मा बहुत बार तीनो की सामूहिक सुताई भी भई । सुबह सुबह नास्ते मा बिरेड मक्खन और दयाराम की पूरियां खा के मौज आ जात रही, दिनभर घर पे पडे पडे मारिओ और कान्ट्रा गेम खेलना हमाई आदत मा शुमार रहा, फिर अम्मा चाहे जितना सुना ले । शाम होते ही लटाई और पतंग बाहर आ जाती थी, और उर्सला के लौंडो की जबतक १०-१२ पेज ना काट लें तबतक हमाई रात नही होत रही । लल्लन और हम तो पतंग के चक्कर मे अपने अपने बाप से हर तीसरे दिन लतियाये जाते थे, लकिने पांणे सार बच चात रहा, काहे की ओका बाप पुरान ...

हिंदू मुस्लिम एकता की अद्भुत मिसाल।

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हिंदू मुस्लिम एकता की अद्भुत मिसाल। टाटमिल चौराहे पर एक ही परिसर में मंदिर है और मस्जिद भी। दोनों का दरवाजा भी एक है। यहां आरती और अजान एक-दूसरे के सहयोग से होती है। इसे हिंदू मुस्लिम एकता की अद्भुत मिसाल कहते हैं। हिंदू और मुस्लिम दोनों मिलकर यहां सफाई करने से लेकर पूजा, इबादत में एक- दूसरे का सहयोग करते हैं। जुमे में मंदिर तक नमाज़ अता की जाती है तो भंडारे के लिए मस्जिद से पानी भरा जाता है। टाटमिल चौराहे पर नयापुल से झकरकटी की तरफ एक ही परिसर में आगे की तरफ श्री शिव हनुमान मंदिर और उसके पीछे एक मीनार मस्जिद एवं मदरसा है। मस्जिद में जाने वाले भगवान के दर्शन करते हुए जाते-आते हैं। भाईचारे के लिए यहां एक ही परिसर में अगल-बगल मंदिर और मस्जिद बनाई गई। तब से यहां भाईचारा कायम है। यहां हम मुस्लिम भाइयों के साथ मिलकर सफाई करते हैं। कभी कोई दिक्कत नहीं हुई। यहां बजरंगबली और अली, मौला और भोला अगल-बगल हैं। अगर आप भी इस भाईचारे में विश्वास रखते हैं तो इस फोटो को इतना शेयर कीजिये कि नफरत फ़ैलाने वाले कुछ मुट्ठी भर लोगों को सबक मिले। # एडमिनटीमकानपुर   # पेज_कानपुर   # गं...

कानपुर की घातक कथाये - भाग 1: “मामा समोसे वाले"

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कानपुर की घातक कथाये - भाग 1: “मामा समोसे वाले" ========================== ===================== 8 जुलाई 2010 को शाम 5 बज कर 17 मिनट पर कानपुर के मोहल्ला जवाहर नगर की सरहद से लगे नेहरुनगर के कमला नेहरु पार्क वाली गली में मास्टर त्रिभुवन शुक्ला के घर में चिक चिक मची थी . बवाल ये रहा की शुक्ल महराज बम्बारोड सब्जी मंडी से 20 रुपिया के सवा किलो दशहरी आम लाये थे . और शुक्लाइन चाची आम की पन्नी आंगन में र ख कर भीतर कौनो काम से गयी और इधर एक काले मुंह वाला जबर बंदर पन्नी सहित आम को ले उड़ा . छत पर पंतग को कन्ना दे रहे शुक्ल महराज के लड़के पवन ने आम ले जाते बंदर को देख चिल्लाने की सोची पर एक तो पनकी वाले बजरंगबली के प्रति भक्ति और दूसरे मुंह में भरे केसर की शक्ति ने पवन की आवाज को गर्दन में रोक दिया . अब लगे हाथ पवन के बारे में भी जान लो : 23 साल के पवन , शुक्ल महराज की पहली आखरी और एक मात्र संतान है , और पिछले 2 साल से एक रजिस्टर ले कर DVS गोविंदनगर में बी.काम की पढाई कर रहे है . हर मंगल और शनीचर को पनकी वाले दरबार में माथा टेकने के साथ साथ “ बजंरग दल “ के सक्रिय कार्यकता और मोहल्ला प्र...