अखण्ड कुँवारापन

अखण्ड कुँवारापन
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हमाये लल्लन मिश्रा(गंगा पार वाले) पहली बार किसी लड़की को देखने अम्मा और दीदी के साथ ....
कानपुर देहात गए। लड़का गंगापारी है पहले ही खबर थी उन सब को ........ 
वहाँ पता चला कि लगभग अधिकतर व्यंजन लड़की ने अपने हाथों से बनाये थे और बेचारी सुबह से ही किचन के कामों में लगी पड़ी थी ...
वो खूबसूरत थी और मेहनती भी ...
देखकर लल्लन की बांछें खिल गयीं औऱ खाना भी स्वादिस्ट......
खाते वक्त बातों बातों में वो पूछ बैठी -
कउन सा डिस ज्यादा पसंद है आपको?
ई मिश्रामुख से निकला- टाटा स्काई ।।
उ भनभनाते हुए उठकर चली -इतना मर मर के सुबह से चूल्हा में झोंक दिए खुद को ...
भइया गंगापार वाले बाबू है इनके खाने में कउनो डिस की कमी न हो ....
और बाबू साहब को टाटा अस्काई.........
भक्क नही करेंगे शादी बिआह ई बौराहा बौरावन से ....
जाओ अब जाकर करो बिआह अब टाटे अस्काई से ।।
बस आधे खाने में ही उठकर हाथ धोना पड़ा और उ लड़की से भी....
रास्ता में खामोशी तोड़ने के लिये अपनी सफाई में अपनी दीदी से बोले .....
समझ नही आया की कानपुर देहात नाम रखकर कानपुर वाले अभी भी बाहरी लोगों को बकलोल काहे बना रहे हैं..
जब्कि उनकी लड़की खाना पीना को डिस कहना और समझना सुरु कर चुकी...
तुम देखी न दीदी ...
बात खत्म करते की उससे पहले अम्मा का चप्पल पैर से निकल कर हाथों में.........
अब रास्ते भर रिक्सा में अम्मा के चप्पल से सुताई भई सो अलग।

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