बहुत जल्द मै अपनो से मिलूंगा ?

"बहुत जल्द मै अपनो से मिलूंगा ?"
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हैल्लो......
हां मां ! मै बोल रहा हूं, राकेश.....
हां बेटा कैसा है तू, कितने दिन हो गये तेरी आवाज सुने हुए,,
राकेश कां मां की पथरीली आँखों मे अचानक चमक सी आ गई, करीब महीने भर बाद वो अपने लाडले बेटे की आवाज सुन रही थी ।
दरअसल राकेश तीन महीने पहले ही CRPF मे भर्ती हुआ था, और पहली पोस्टिंग मे ही उसे छत्तीसगढ के नक्सली बहुल छेत्र मे पोस्टिंग मिली थी, जंहली एरिया होने की वजह से महीने मे एक आधा बार ही घर फोन कर पाता था ।
मां, मै अगले हफ्ते घर आ रहा हूं, मेरी छुट्टी मंजूर हो गई है........
आंखों मे घर और गांव की यादें लिये राकेश ने फोन पर मां को खुशखबरी दी ।
हैल्लो भइया.........कैसे हो आप, आपकी बहुत याद आती है, कब आ रहे हो आप ? बताओ ना ?
छुटकी (राकेश की छोटी बहन) ने मां के हांथो से फोन छुडाया और खुशी के नैरो ढेरों सवाल उसके मन से निकलते गये.......
बहुत जल्द आ रहा हूं छुटकी, तू कैसी है, अब तो तू ग्यारहवीं कच्छा मे पहुंच गई होगी ।
बता तो तेरे लिये क्या लेके आऊं ?
बहन की पढाई की प्रगति सोंच कर राकेश का सीन फूला हुआ था ।
कुछ नही चाहिए भइया, बस आप जल्दी वापस आ जाओ, मेरे लिए तो आप ही सबसे बडा तोहफा हो.......
कहते हुए छुटकी की आंखें एका एक भर आई और उसे सब कुछ धुंधला सा दिखने लगा,
छुटकी सुन ! पिता जी कहां हैं ?
वो खेत मे हैं भइया, गेंहू की कटाई चल रही है, इस बार फसल अच्छी हुई है, तो वो दिनभर खेत मे ही रहते हैं, तुम्हे बहुत याद करते हैं और.......
कहते हुए एकदम से चुप हो गई,
और...और क्या ? राकेश ने परेशान होते हुए पूछा ।
और पूरे गांव मे बहुत ही गर्व से कहते हैं, " मेरा बेटा फौज मे है"
सुनते ही राकेश की आंखें भर आई, एक पल को वो बिल्कुल शांत हो गया.......
हैल्लो, भइया ! हैल्लो, कहां खो गये.....
कहीं नही, राकेश ने खुद को सम्हालते हुए कहा ।
छुटकी, पिता जी से कहना मै बहुत जल्द वापस आ रहा हूं ।
इतना कहकर राकेश ने फोन काट दिया ।
करीब घंटे भर तक वो अपने कैंप मे बैठा हुआ सोचता रहा....
फिर उसने अपना फोन निकाला, और फेसबुक पर एक स्टेटस डाला.........
"बहुत जल्द मै अपनो से मिलूंगा"
उसके बाद एक आनलाइन शापिंग वेबसाइट से छुटकी के लिए एक खूबसूरत तोहफा आडर किया, और फिर आंखों मे परिवार की यादें लिये फोन को सीने पर रखके, वहीं सो गया.............
बेटे के आने की खुशी मे जहां राकेश की मां के चेहरे पर एक अलौकिक चमक आ गई थी, वहीं छुटकी भी किसी नन्ही चिडिया की तरह चहक रही थी, और पिता जी भी आज चाय की दुकान पर सीना फूला कर बैठते हैं,
एक ओर मां अपने बेटे का कमरा सही करने जुट गई, वहीं छुटकी भी अपनी सहेलियों को बारी बारी जाकर बताने लगी की उसका भाई आने वाला है,
राकेश के दोस्तों ने जब उसका फेसबुक स्टेटस पढा तो वो भी फूले ना समाये, आखिर उनका जिगरी यार जो वापस आने वाला था ।
पूरे मोहल्ले मे सिर्फ राकेश के वापस आने की खबर चल रही थी, सभी को बेसब्री से इंतजार था ।
वहीं इन सब से बेखबर राकेश अपने कैंप मे बैठा सोच रहा था, कई सपने जो उसके अपनों ने देखे थे उसे पूरे करने थे.........
शााम के करीब सात बजे थे, राकेश अपने साथी सैनिकों संग कैप मे बैठा हुआ था, सभी जवानो मे हसी मजाक चल रहा था, कोई अपनी बीवी के बेवकूफी भरे किस्से सुना रहा था, कोई अपने बच्चे के पहले कदमों का विडियो दिखा रहा था, किसी के हांथो मे अपनी हो ने वाली मंगेतर की तस्वीर थी...........
दिनभर दुश्मनो से लोहा लेने वाले जवाम कितने जिंदादिल हैं ये उनको देखकर साफ पता चलता था, हांथो मे जिस बंदूक को पकडकर दुस्मनो पर निर्भीक गोली चलाने वाले जवानो की बचकानी सी बातें सुनकर आज वो बंदूक जो किनारे पर रखी हुईं थी, मुस्का रही थी,
रात्री का भोजन तैयार करके रामस्वरूप (कुक) चाचा ने जवानो को खाने के लिये बुलाय,
सभी हांथो मे थाली, चम्मच लिये बाहर एक एक कर खाना परोसने लगे, जो लाइन मे पीछे खडे थे वो बीच बीच में चम्मच से थाली को बजाते, और कोई कोई तो गाना भी गाता,
राकेश भी मंद मंद आवाज में कुछ गुनगनाता हुआ खाने के पास पहुंचा, परोसने वाले ने राकेश से कहा..........
"आब से तू जम के खा वरना जब घर पहुंचेंगा तो मां कहेगी कितना कमजोर हो गया है मेरा लाडला"
ये शब्द सुनकर का के साथ साभी साथी ठहाके लगाने लगे,
सभी अपनी अपनी थाली लिये धरती पर बैठ कर बेखौफ भोजन कर रहे थे, किसी से कोई शिकायत ना थी, ना ही दाल पतली थी और ना ही रोटी जली हुई........
राकेश ने अपना पहला निवाला मुह मे डाला ही था कि तभी....…
एक जोरदार धमाके से धरती हिल गई, जबतक कोई कुछ समझ पाता तड तड की आवाज करती गोलियाॉ चारो तरफ से बरसने लगीं,
धुंए के गुबार के बीच राकेश और उसके साथी, कैंप की तरफ झपटे और अपनी अपनी इंसास रायफल उठा के पोजिसन लेने लगे, पर शायद उन्हे अंदाजा ना था कि दुस्मन कितने और किस तरफ हैं, करीब आधे घंटे तक गोलियाॉ चलती रही, राकेश को समझ नही आ रहा था वो किस तरफ गोलियाॉ चलाये, एक एक कर उसके साथी उस धुंये के गुबार मे खोते जा रहे थे, तभी एक और जोरधार धमाके से जंगल गूंज उठा, और चंद मिनट बाद एक भयानक शांति छा गई...........
सुबह जब CRPF की एक टुकडी मदद को पहुंची तो उस भयानक मंजर को देखकर उनकी रूह चीख उठी, एक एक कौर खाई हुई रोटियां, और बिखरी हुई खाने की थालियां उस भयानक मंजर की गवाही चीख चीख कर दे रही थी,
जवानो छत- विछत पडे शरीर दुश्मनो की क्रूरता के सबूत बडी ही बेरहमी से दे रहे थे, किसी की दोनो आँखे निकाल ली गई, किसी के हांथो की उंगलिया काट ली गई, और तो और किसी जवान के गुप्तांगो मे भी छूरे से गोदा गया,
चारो तरफ बस जवानो के शव और उनके टुकडे बिखरे पडे थे,
इन्ही सब के बीच पडा था राकेश का बेजान शरीर, जिसके साथ ही बेजान हो गये थे वो सब सपने जो उसके अपनों ने देखे थे,
खून से भीगी धरती भी आज ऱो रोकर अपने को कोस रही थी, तभी आकाश भी अपने को रोक नही पाया और जम के बरस उठा............
साथी जवानो ने अपने दिल पर पथ्थर रखकर अपने भाइयों के शवों को इकठ्ठा किया और बेस कैंप तक लेकर आये, उनकी आँखों मे आंसू तो थे पर जिगरी मे इतना आग जल रही थी कि जिस आग को सिर्फ दुश्मनो का खून ही ठंडा कर सकता था, पर वो सरकार और आलाकमान के आगे खुद को बेबस और लाचार समझ रहे थे ।।
तीन दिन बाद राकेश का पार्थिव शरीर कानपुर पहुंचा, खबर मिलने के बाद से ही पूरा शहर शोक मे था, राकेश के सभी जानने वाले राकेश के घर पहुंच गये थे, और जो नही जानता था वो भी राकेश के घर पहुंच रहा था,
राकेश के घर में एक भयानक और निर्भीक संन्नाटा पसरा हुआ था, ना को चीख ना चित्कार और ना ही रुदल, चारों ओर बस शांति, एक ओर राकेश की मां एक खंबे से सटी बैठी हैं, जिसकी आंखों मे आंसू तो बहुत है पर बाहर निकलने को कतरा रहे है, छुटकी बेसुध सी टकटकी लगाये बस अपने भाई का इंतजार कर रही है, वहीं पापा एक तरफ अपने भरे हुए गले से पत्रकारों को अपने बेटे की शहादत का मतलब समझा रहे हैं, कुछ गमगीन दोस्त जो अपने आंसुओं को छुपाने के लिए बगलें झांक रहे हैं, क्योकी उन्होने कभी वादा किया था कि, "जब भी मिलेंगे हसते हुए मिलेंगे"........
तभी राकेश का पार्थिव शरीर पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसके घर पहुंचता है, पिता जी नम आंखों से अपने बेटे को आखिरी आशिर्वाद देते है, पूरे मोहल्ले की आंखें से सैलाब निकर रहा है, अपने बेटे को आखिरी बार देख रही मां एक पल को मुस्काती है, और फिर एक जोरदार चीख से पूरा कानपुर गूंज उठता है.....
बेटा......…!!
छुटकी ! वो अब भी बेसुध सी बस अपने भाई के चेहरे को निहार रही है,
तभी घर के बाहर एक मोटरसाइकल आ कर रुकती है, एक नवजवान हांथ मै एक पैकेट लिये उतर कर आता है, पर अंदर पहुंचते ही उसके कदम थम गये, पैकेट लिये हुए हांथ एका एक पीछे की ओर चले जाते है, और वो वापस जाने के लिये मुडता ही है कि,......
कोई उसे पीछे से रोक लेता है, वो कोई और नही छुटकी ही है,
उस नव जवान के हांथो से छुटकी पैकेट छुडाकर खोलती है, और देखते ही उसकी आंखें बरस पडती हैं, और वो उस नवजवान से लिपटकर फफक फफक कर रो पडती है..........
दरअसल वो नवजवान मै अभागा ही था, जो एक भाई का तोहफा लेकर उस मनहूस दिन उस बहन के पास पहुंचा था ।
अब मेरी भी आंखें खुद को रोक नही पाई, और मै भी उस बहन से लिपटकर रो पडा............
अब राकेश इस दुनिया मे नही है, हैं तो बस उसकी बहादुरी, शहादत और जिंदादिली के किस्से........
और हां उसका अंतिम फेसबुक स्टेटस जिसमे अब भी लाइक्स और कमेंट आ रहे हैं, जो अब भी अपने आप में एक सवालिया निशानी लिये ब्रम्हांड मे किसी टूटते तारे सा भटक रहा है............
"बहुत जल्द मै अपनो से मिलूंगा ?"

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