कानपुर की गलियां
"कानपुर की गलियां" ------------------------------ कानपुर की गलियों के बारे में लिखने का मूड बना तो खुद को रावतपुर की क्रासिंग के जाम में फंसा पाया । कहाँ से शुरू करूँ ? जिधर जाऊ उधर गली आगे से मुड़ती है । कहीं कहीं तो बंद गली भी मिलती है । पलटी मारो तो लौट के बुद्धू हुवै पहुंचे जहां से शुरू करीन रहे । "गणेश शंकर विद्यार्थी' इन्ही गलियों में रहा करते थे, और उनका "प्रताप" भी इन्ही क्रांतिकारी गलियों की देंन था । और उन दोनों का अंत भी इन्ही गलियों में हुआ । किधर से शुरू करूँ ? सेंट्रल से निकल कर सीधा भूसा टोली की गली में घुस जाऊं या नइ सड़क होते हुए रोटी वाली गली में । बड़े चौराहे पे राजू की "अधपइ" कड़क कुल्हड़ वाली चाय पीते हुए बनारसी का पान मुह में ठूंसकर कचहरी वाली गली होते हुए गोरा कब्रिस्तान पहुँच जाऊं । गोला घाट में डुबकी लगाकर बाबा "आनंदेश्वर" के दर्शन करूँ, बंद पड़ी "लाल इमली" को आशा भरी नजरों से देखूं और प्रसासन को कोसते हुए लकडमंडी घुस जाऊं । चुन्नीगंज "शनि मंदिर" में मत्था टेकते हुए ग्वालटोली की तरफ...
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