कनपुरिया लब

कनपुरिया लब

चैप्टर.1.... 

मेरे चाचा के लड़के की शादी थी। रात के करीब दस बज रहे थे, मैं चुपचाप मैरिज हाल की छत पर खड़ा होकर लल्लन का़ इंतजार कर रहा था वो घनघोर ठंडी बियर लेने गया था।
बीच-बीच मे व्हाट्सअप पर आये हुए मैसेजों का जवाब भी देता जा रहा था।
तभी सीढ़ियों से किसी के आने की आहट सुनाई दी,
मेरे कान खड़े हो गये, निगाहें एकाएक सीढ़ियों की तरफ हो गईं, मोबाइल पर टाइप करती उंगलियां थम गईं और................
हल्के आसमानी रंग के सूट में वो लड़की छत पर आई, गोल बड़ी-बड़ी काली आँखें, लम्बी सी नाक, गुलाब की पंखुडियों को डाइटिंग मे टक्कर देते पतले होंठ, कोमल कानों के किनारे बड़ी ही शालीनता से खोंसी हुई जुल्फें, एक हाथ में सैमसंग j5 फोन, दूसरे में छोटा सा हैंड बैग ।
आते ही उसने हमें पूरी तरह से इग्नोर करा, और बड़ी ही बैसब्री से उसकी आँखें छत के चारों तरफ कुछ ढूंढने लगीं।
क्या आप किसी को ढूंढ रहीं हैं? Can I help you?
हमने बड़े ही तरीके से उससे पूछा।
Actually मैं वाशरूम ढूंढ रही हूं, वो मेरी चुन्नी में थोड़ी सी कॉफी गिर गई है तो...........
Oh I see.....मैंने उसे बीच में ही रोकते हुए कहा, और मेरी निगाहें एकाएक उसकी चुन्नी पर पड़ी जिसके एक किनारे पर कॉफी का दाग था जो गहरा ही होता जा रहा था ।
वाशरूम..........हाँ वो उस तरफ है। मैंने छत की एक ओर बने वाशरूम की तरफ इशारा किया ।
Oh thanks! उसने कहा और चली गई।
तभी लल्लन बाबू प्रकट भये जिनके दोनों हाथ में दो-दो घनघोर ठंडी बियर की बोतल थी और कोट की जेब में गोल्ड फ्लैक की डिब्बी, और दायें हाध की छंगुनियाँ  में लटकती एक पन्नी जिसमे हल्दी राम की आलू भुजिया और पउवा भर मूंगफली चटनी के साथ थी ।
अबे लल्लन जल्दी ये नशेबाजी का सामान छुपाओ। हमने दबी हुई आवाज मे लल्लन को समझाया ।
काहे बे का हुआ? छत पर रखी पानी की टंकी के पीछे सारा सामान ठिकाने लगाते हुए लल्लन ने हम से पूछा।
तभी वाश रूम का दरवाजा खुला और वो बाहर आई, उसकी आधी भीगी हुई चुन्नी ये साफ साफ बता रही थी कि बेचारी को कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी।
ये कौन है बे? लल्लन ने हमाये कान में खुसफुसा के पूछा ।
पता नई बे चुप रहो। हमने धीरे से कहा ।
Thank you Mr.?........उसने मेरा नाम जानने की कोशिश की ।
Abhinav, myself abhinav shrivastava. और ये मेरे मित्र लल्लन मिश्रा। मैंने बड़े जोश से अपना और लल्लन का परिचय दिया।
और ये तो हमारा फर्ज था ।
वैसे आपने अपना नाम नही बताया ? मैंने उत्सुकता से पूछा ।
मेरा नाम वंदना है, वंदना श्रीवास्तव। उसने मुस्काते हुए अपना नाम बताया और नीचे चली गई।
मैं और लल्लन अपना खुला मुँह लिये कुछ देर तक बस उसके बारे में सपने सजाते रहे, फिर मुँह बंद किया और टंकी के पीछे से घनघोर ठंडी बियर निकाली जो अब कुछ गरम हो चली थी, और गरम मूंगफली जो अब कुछ ठंडी हो चली थी निकाली।
और मौसम बनाने की ओर अग्रसर हो गये।
एक बोतल डकारने के बाद सिगरेट सुलगाते हुए लल्लन अपनी गंगापार वाली गर्लफ्रेंड (जिसके अब दो बच्चे भी हो गये हैं) को गरियाने लगे, और बीच बीच में चटनी चाट के डकार भी मारते जाते।
और हमें तो जैसे-जैसे बोतल खाली हो रही थी वैसे वैसे नशे की जगह वंदना दिमाग में चढ़ रही थी।
मैं बस उसी के बारे में सोच रहा था।

चैप्टर.2.... 

दोनों बोतल गड़ाम-गड़ाम डकारने के बाद लल्लन ने एक भयंकर राछसी डकार मारी और गोल्ड फ्लैक के सुट्टे खिचते भये अपनी गंगापार वाली गर्लफ्रेंड को ३६५वीं बार ना याद करने की कसम खाई, और फिर उसकी यादों की एक लम्बी सांस भरके, घडियाली आंसू के साथ अपनी किस्मत के छिछोरेपन का व्याख्यान देना सुरू कर दिया ।
हम चुपचाप लल्लन की हिम्मतवाले फिल्म से भी जादा बकवास बातें सुन रहे थे, पर हमारा दिमाग अभी भी वंदना के बारे मे ही सोच रहा था,
हमे कोई प्यार व्यार नही हुआ था, वो बस घनघोर ठंडी बियर का कमाल था कि हम अपने आप को लब एट फर्सट साइट का बीमार समझ रहे थे ।
किसी तरह तेढे मेढे मुह बनाकर हमने भी दूसरी बोतल अंदर उताऱी, और सिगरेट फूकते हुये लल्लन की बकवास सुनने लगे और मन ही मन वंदना से कैसे मिला जाये दोबारा का प्लान बनाने लगे ।
तभी हमाये फोन की घंटी बजी, उधर से चाचा की थप्पडियाती हुई आवाज कानो मे पडी "कहां मर रहे हो जल्दी यहां आओ जयमाल होने जा रहा है" ।
हमने अपना और लल्लन का मुह बाबा इलाइची के साथ कमला पसंद किया और लल्लन को "कन्ट्रोल मे रहना" कह के नीचे जयमाल स्टेज के पास पहुंचे,
स्टेज पे दो राजसी स्टाइल की कुर्सियां लगी थी, मानो आपस मे कह रही हो की आज तो ये दोनो शाही जिंदगी जी लें कल से तो युद्ध ही होना है,
एक कुर्सी पर हमाये चचेरे भाई बिल्कुल चीकोलाइट होके महरून शेरवानी पहने तशरीफ सजाये हुए थे, दूसरी कुर्सी खाली थी और सब दुल्हन का इंतजार कर रहे थे ।
हमई बियर भरी आंखें बस वंदना को पूरे पंडाल मे ढूंढने लगीं......
तभी लल्लन बाबू हमाये भाई के पास स्टेज पर पहुंच गये, और कमला पसंद की अलौकिक चमाकार वाली बत्तीसी निकार के दूसरी कुर्सी पर धडाम हो गये,
भाई के साथ लगभग देढ दो सौ बेहूदा सेल्फी पेलने के बाद हमाये आ के चिपट गये और ले सेल्फी दे सेल्फी करने लगे........
तभी अनाउंसमेंट हुई की दुल्हन आ रही है
सभी की नजरें पंजाल के दूसरी तरफ बने गेट की ओर देखने लगी......
अपने वजन से तीन गुना वजनी गोल्डन लहंगा पहने दुल्हन ने प्रवेश किया, उसके बांई ओर एक लडकी सहारा देते हुए चल रही थी ।
सभी निगाहें दुल्हन पर थी, पर मेरी ?......
मेरी नजरें सिर्फ और सिर्फ उस लडकी पर थीं जो उसे सहारा दे रही थी
शकल कुछ जानी पहचानी थी.....
हलिके Parrot green रंग की साडी जिसके बाडर बे गोल्डन जरी की चौडी लेस, गोल्डन हाफ बैकलेस, और फुल स्लीवलेस ब्लाउज, कानों मे बडे से गोल्डन रिंग, सर पर बलों का यूनिक जूडा और पैर मे करीब तीन इंची हील की सैंडल ।
OMG ये तो वंदना है । हमने मन मे अश्चर्य मे कहा ।
और बस देखता ही रहा......
अब मेरा सारा नशा उतर चुका था, अब तो बस दिल और दिमाग में वंदना ही चढ चुकी थी ।
अब वाकई मुझे लब एट फर्सट साइट वाली फीलिंग हो रही थी..............

चैप्टर.3.... 

आजा माही आजा माही आ सोडियां.....,..
गाने के साथ डी.जे. वाले बाबू ने दुल्हन का जयमाल स्टेज पर जोरदार स्वागत किया ।
सभी की नजरें दुल्हा दुल्हन पर थी, कैमरे के जलते बुझते फ्लैश किसी पुराने धार्मिक टी वी सीरियल वाली फीलिंग दे रहे थे जिसमे युद्ध के समय राछसों के बांडों से ऐसी ही बिजली निकलती है ।
पूरे स्टेज पर सिर्फ महमान ही महमान नजर आ रहे थे,
पुरुश और लौंडे जहा कोट, और ब्लेजर मे भी कम्पन मोड मे थे, वही महिलाओं के ऊपर इसका कोई असर नही था, वो बात अलग है कि अगले दिन उनकी नाक से बबल निकलने लगे 😉
वहीं हमाये बहुमुखी प्रतिभा के धनी मित्र श्रीमान लल्लन मिश्रा हरे रंग के कारपेट को लाल करने मे लगे थे ।
जोरदार पुष्प वर्षा के साथ दुल्हा ने दुल्हन को जयमाल पहनाया, अब दुल्हन की बारी थी, दुल्हन ने हार पहनाने की कोशिश की तभी लल्लन ने दुल्हे को गोद मे उठा कर ऊंचा करने की कोशिश की, लेकिन वजन जादा होने के कारण प्रेशर सम्भाल नही पाये और स्टेज पर एक जहरीला धमाका हो गया 😀
भइया को नीचे उतारके लल्लन धीरे से खिसक लिये, और स्टेज पर मौजूद सभी ने उन्हे ठहाके के साथ विदाई दि।
जय माल हो गया अब बारी फोटोशूट की थी, सब के सब फोटो के लिये ऐसी भसड मचा रहे थे जैसे ये फोटू कल "सनसनी" मे दिखाई जायेगी।
हम खडे खडे सिर्फ वंदना को ही देखे जा रहे थे, वो दुल्हन के पास खडी होकर उसकी नरवसनेस दूर कर रही थी, मेरे मन से सिर्फ एक ही आवाज निकल रही थी "यार एक बार देख ले" पर एसा कुछ हो नही रहा था ।
हमे पता भी नही रहा कि आखिर दुल्हन से उसका रिस्ता क्या है ?.....
हम खडे खडे यही सब सोच रहे थे कि, स्टेज पर से किसी के पुकारने की आवाज आई,
देखा तो मेरा पूरा परिवार स्टेज पर नवजोडे के पीछे खडा था, मतलब हमारा भी फोटू का नम्बर आ गया ।
हमने लल्लन को पकडा और स्टेज पर पहुच गये । दो ठो फोटू खिचवाये के बाद हमने भइया के कान मे धीरे से वंदना का परिचय पूंछा.........
काहे बे का हुआ ? कुछ कलाकारी ना पेलना उसके साथ । भइया ने हडकाते भय कहा ।
अरे कइसी बात कर रहे हो, आपने कभी देखा है हमको ऐसा कुछ करते हुए, हम तो बस एसे ही पूछ रहे हैं । हमने सफाई देते भय कहा ।
अबे सरऊ वो इकलौती साली है हमारी । भइया ने शरमाते भय कहा ।
अब हमारी खुशी डबल और सपने ट्रिपल हो चुके थे....
भइया कि साली मतलब रिश्ते मे हमाई भी साली, और साली से तो रिश्ता ही प्यार और मजाक का होता है.....
मै मन ही मन सपने सजा रहा था कि लल्लन बाबू बिरयानी मे हड्डी की तरह टपक पडे.....
अबे श्रीवास्तव चलो बे खाना नई खायेका है का ? आधे बराती हुसड के घर भी चले गये, अब खाली परिवार वाले बचे हैं चलो बे जल्दी ।
हमरा पेट तो वंदना को देखने मात्र से ही भर गया था, पर लल्लन की जबरईं की वजह से हम पहुंच गये खाने के लिये ।
बुफे लगा हुआ था कई मेल की शब्जी, पूरी, नान, रोटी, पलाव, सलाद, मिठई........
मतलब हर वो चीज मौजूद थी जो एक लडकी का बाप अपनी तरफ से कर सकता था ।
हमने प्लेट और चम्मच उठाया और परोसने के लिये आगे बढे,
हमाई प्लेट मे जहां सिर्फ एक सब्जी, दो रोटी, सलाद व पापड था, वही लल्लन ने अपने हुनर का परिचय करवाते हुए प्लेट मे छत्तीसों आइटम फिट किये थे । वो बात और है कि प्लेट मे रखा दहीबडा वाकई दहीबडा है या गुलाब जामुन लल्लन खुद कनफ्यूज थे ।
हम हुसड ही रहे थे कि पीछे से किसी की आवाज आई "कितना पनीर खाओगे जीजा जी"
हमने मुड के देखा तो मुह खुला का खुला रह गया, और अंदर पनीर का टुकडा साफ नजर आ रहा था ।
वंदना तुम ? मतलब जीजा जी ?…......…
अह ! मै कनफ्यूज था ।
हां ! जीजा जी । आप हमारे जीजा जी के भाई हैं तो जीजा जी ही हुए ना ? उसने हसते हुए कहा ।
पर तुम्हे कैसे पता ? मैने उत्सुकता से पूछा ।
आपके भाइया ने आपकी परिचय दिया कि, आप उनके चचेरे छोटे भाई हैं । उसने क्लियर किया ।
"उस पल दिल ही दिल मे मैन भइया को थैंक्स कहा ।
मै वंदना से ये भी पूछना चाहता था कि क्या तुमने भइया से मेरे बारे मे पूछा या.................?"
वंदना प्लीज ये जीजा जी मत बोलो, just call me abhinav. मैने चिढने की एक्टिंग करते हुए रिक्वेस्ट की ।
OK जीजा जी,.....oh sorry abhinav. उसने तफरी ली ।
खाना खाते हुए हमारी काफी सारी बातें हुईं, अब हम फ्रैंक हो चुके थे, पर वंदना की वो 70mm smile हमे अब भी नरवस कर रही थी ।
कुछ तो बात थी उस लडकी जो उसको दूसरों से अलग कर रही थी । जब वो बात करती है तो मानो आसमान मे कई सारे तारे एकसाथ टूट कर जा रहे हों,
जब वो हसती है, तो मानो बारिश, बादल, और सतरंगी इंद्रधनुश एक साथ हो.....
उसकी आंखें जैसे कोई किताब, जिसमे दुनिया की सबसे हसीन लब स्टोरी लिखी हो.............
अब मुझे सच मे प्यार हो गया था..........

चैप्टर.4.... 

बातें यूही चलती रहीं और कब हमारा खाना कम्प्लीट हो गया पता ही नही चला ।
बातो ही बातों मे हमारी दोस्ती की एक मीठी सी शुरुआत हो चुकी थी । दिल मे मेरे कुछ अरमान घर करने लगे थे, आंखो मे सुनहरी चमक बिखर सी गई, चाहता था कि दिल की बात कह दू उसे, पर इतनी जल्दबादी ठीक नही लगी मुझे ।
खाना खाने के बाद हम पानी पी हि रहे थे कि वंदना एक बार फिर दोनो हाथों मे प्लेट में सजी हुई कुछ मिठाई लेकर आई.......
हमाये और लल्लन की तरफ प्लेट बढाते हुए बोली.......
"मिठाई तो तुम्हे खानी ही पडेगी अभिनव, अब हमारा रिश्ता जो जुडने जा रहा है ।"
उसकी आवाज मे हमारी दोस्ती की खुशी और आंखो मे शायद बहन से दूर होने का मलाल था । उसके चेहरे के भाव भी कुछ अलग थे, जैसे किसी बात का भय सता रहा हो । पर होंठो पर वही 70mm स्माइल.........
सुबह के २:४० मिनट हो रहे थे,
गेस्ट हाउस की छत पर शादी का खूबसूरत मंडप सजा था, पंडित अपने ना समझ मे आने वाले श्लोक पढ रहा था, दुल्हा दुल्हन आमने सामने बैठे थे, और उनके पीछे उनके परिवार के सदस्य ।
मै भी एक कुर्सी लेकर वही बैठ गया, वहीं जहा से ठीक सामने देखने पर वो नजर आ रही थी ।
सर्द मौसम, हल्की हल्की ठंडी हवा कानो को शीतल कर रही थी, कानपुर जैसा बडा और हमेशा शोर शराबे वाला मेरा शहर जैसे बिल्कुल शांत पड गया था, पंडित के मंत्रो के बाद वाला स्वाहा, और हमाई धडकन हमे बिल्कुल साफ सुनाई दे रही थी ।
लल्लन बाबू अपना हैंगओवर लिये एक कुर्सी मे धडाम थे, वैसे हम भी किसी शादी मे इतनी देर तक नही जग पाते, पर उस दिन.....
जैसे नींद से पुरानी दुश्मनी हो, चाहकर भी नही आ रही थी ।
मुझे शादी की रश्मो मे कोई दिल्चस्पी नही थी, हम तो बस बैठे बैठे वंदना को ताड रहे थे,
जब जब कैमरे का फ्लैस उसके चेहरे पर पडता, लगता मानो चांद आज जमीं पर उतर आया है, हवाओं से अठखेलियां करती उसकी जुल्फे जैसे दो बच्चे आपस मे खेल कर रहे हो ।
बीच बीच मे हमारी नजरों की कुछ मीठी सी शरारतें होती और फिर शर्मा के उसकी नजरें कभी यहां, कभी वहां...........,.
इन्ही सब के बीच भइया के सात फेरे पूरे हुए और हमे अधिकारिक रूप से नई भाभी मिल गईं ।
सुबह के दस बज रहे थे, विदाई का वक्त था, मै वंदना को पूरे गेस्ट हाउस मे ढूंढ चुका था, पर फेरों के बाद से वो दिखी ही नही, मै खाली हांथ नही लौटना चाहता था, भले ही मुझे कुछ खूबसूरत यादों के साथ खूबसूरत भाभी भी मिल गईं थी, पर मै वंदना से एक बार मिलना चाहता था, उससे कुछ कहना चाहता था, और सबसे जरूरी उसका नंबर लेना चाहता था ।
तभी लल्लन को किसी ने बताया कि वो घर गई है और विदाई के समय भाभी के साथ आयेगी।
मै दिल मे सुकून लिये छत पर लल्लन के साथ बैठा था, और उसका इंतजार कर रहा था ।
लल्लन को मैने अपनी सारी भावनायें, जो वंदना के प्रती थीं व्यक्त कर दीं ।
लल्लन ने जवाब मे सिर्फ एक लाइन कही जो मेरे दिल मे हमेशा के लिये घर कर गई.........
"श्रीवास्तव भाभी जी तो हम अब इसी को बोलेंगे"
जी कर रहा था कि लल्लन की एक जोरदार पप्पी ले लूं, पर इमोशन पर काबू किया और गले लगाकर ही काम चलाया ।
विदाई के लिये गाडी दरवाजे पे लग चुकी थी, इंडियन पंजाबी भांगडा ढोल वाले पूरे जोश मे बजा रहे थे
और भाभी को दरवाजे पर ले कर वो आई,
मै अभी भी छत पर ही खडा होकर ये सब देख रहा था,
विदाई के समय उस 70mm स्माइल वाली लडकी आंखें से बरबस ही आंसू बह निकले, अपनी बहन जो अब अपने घर जा रही थी, के गले से लिपटकर वो खूब रोई...
वैसे तो हम लडके वाले थे पर उसको देख कर हमाई भी आंखे कुछ नम हो चली..........
विदाई हुई गाडी बराती विदा हो गये पर हम और लल्लन अभी भी वहीं खडे थे, इस आस मे कि शायद वंदना से एक बार और मुलाकात हो जाये।
विदाई के बाद जब लडकी वाले अंदर जाने लगे तभी उसकी नजर हम पर पडी, कुछ छड वो हमे आश्चर्य भरी नजरों से देखती रही, फिर आखों से इशारा किया "क्या हुआ"
हमने जवाब मे बस अपनी नम पलकें झुका दीं.....
शायद वो समझ गई थी कि हम क्या कहना चाहता है,
वो तो छत पर नही आई, पर करीब दस मिनट बाद एक बच्ची छत पर आई और एक कागज का टुकडा मेरे हांथ पर रखकर चली गईं,
मै कुछ समझ पाता इससे पहले ही लल्लन ने वो टुकडा मेरे हाँथ से छीन लिया, और उसे खोलकर पढा, और खुशी मे इतनी जोर चिल्लाया कि अंदर का सारा लबाब हमाये शर्ट पर आ टपका और शर्ट का रंग सफेद से गेरुआ हो चल.........
उस पर्ची मे एक दस अंको के नम्बर के साथ एक प्यारा सा नाम लिखा था...................
"वंदना"

चैप्टर.5.... 

हम घर की बालकनी मे खडे होकर सर्दी की मीठी धूप ले रहे थे, हमाये एक हांथ मे चाय का कप, और दूसरे मे फोन था, फोन पर बार बार उसका नंबर डायल करते और हर बार घंटी जाने से पहले कट कर देते ।
हलांकि आज भाई की शादी को पूरे चार दिन हो गये हैं, और इन चार दिनो मे ऐसा कोई दिन नही गया होगा जिसमे हमने दिनभर मे करीब पैतीस बार उसका नंबर ना डायल किया हो........
पर हर बार घंटी जाने से पहले ही कट कर दिया, ये सोच के कि आखिर हम उससे कहेंगे क्या ?
बात सुरू कहां से करेंगे ?
क्या वो मेरी बातो पर रिस्पांस देगी...,
फलान, ढिमकाना..................
हमने सोचा छोडो अब शाम को पक्का काल करके उससे बात करुंगा ।
शाम के करीब ६:०० बज रहे होंगे, हम लल्लन के घर पहुंचे और अपनी सारी व्यथा उससे बताई,
का बे झंडू चार दिन हुई गये और एक लौंडिया के फोन की घंटी नही बजी तुम से, का गुंडा बनोगे बे ।
लल्लन ने अपने परिचित अंदाज मे हमको ताना मारा ।
यार लल्लन हमाई हिम्मत नही पड रही उसके फोन करने की । हमने दुखी मन से कहा ।
आओ अच्छा चलें बाहर एक ठो कमला अंदर जायेगा फिर कौनो ना कौनो आइडिया जरूर मिलेगी़ा । लल्लन ने बाहर चलने का इशारा करते हुए कहा ।
सामने चौरसिया की पान की गुमटी पर पहुंच के हमने एक एक ठो कमला फांका, गुमटी मे कई लोग मोदी की चुनावी रैलियों मे आ रही भीड पे बकइती पेले थे, कोई कह रहा था भीड खरीदी हुई है, तो कोई कह रहा था कि मोदी की आंधी चल रही है, वही इनसब के बीच चौरसिया मजे से गोल्ड फ्लेक कि डिब्बियां खाली करे मा लगा रहा । खैर हमको मोदी और उसकी आंधी से कोई लेना देना नही था, हम तो ये सोचने मे व्यस्त थे कि वंदना को किस बहाने काल करेंगे ।
तभी लल्लन ने कुछ ऐसा कहा कि हमारा दिमाग घूम गया........
"अबे श्रीवास्तव कमसे कम एक बार काल कर के ये तो देख लेव की आखिर नंबर वही का है, या तुमको टोपी पहिना दिहिस बे ।"
हमने तुरंत जेब से फोन निकाला और वंदना का नंबर डायल कर दिया, पूरी घंटी बजी पर फोन नही उठा ।
लल्लन ने रिडायल का इशारा किया, हमने दोबारा डायल किया, इस बार चौथी घंटी बजी ही थी कि...........
हैलो......एक हल्की सी आवाज उधर से आई।
हम आवाज पहचान गये, ये वंदना ही है.....
पर हम इधर से कुछ ना बोले, एक तो क्या बोलें पता नही था, वही दूसरा कि मुह मे कमला पसंद का लबाब बना था,
दो तीन बार उसने हैल्लो, हैल्लो किया पर हमाये कुछ ना बोले पर फोन कट कर दिया ।
ये तो पक्का हो गया कि नंबर वंदना का ही है पर बात करने की हिम्मत नही हो रही है बे । हमने लल्लन से कहा ।
तुम साले बैल हो, तुमसे कुछ नही होये वाला । लल्लन ने हमको गरियाते हुए जमके ताना मारा ।
क्या करें बे कुछ बताओ ? हमने लल्लन से कुछ सुझाव देने के लिये कहा ।
और लल्लन ने हमको डर भगाने का वही फारमूला बताया जो पूरा कानपुर यूज करता है ।
पति अपनी पत्नी के डर को भगाने के लिये,
इंपलाई अपने बास के डर को भगाने के लिये,
लौंडे अपने बाप के डर को भगाने के लिये, और क्रिमनल पुलिस के डर को भगाने के लिये....,.....
मतलब, दो पैग अंदर और हम सिकंदर ।
समय शाम के करीब सवा सात हो रहा था ।
हम और लल्लन ग्रीन पार्क चौराहे पे कान चैंबर्स के नीम के पेड के नीचे शेरू चाय वाले के काउंटर पे पूरा नशेबाजी का सामान लेके बैठे थे ।
पैग पे पैग अंदर जा रहे थे और तरह तरह के विचार हमाये लल्लन बाबू के दिमाग से उपज रहे थे ।
कुछ देर तक तो लल्लन ने हमको अपना अनमोल ग्यान दिया, लेकिन गहरी होते ही वो फिर से अपनी गंगापार वाली महिला मित्र के वियोग मे डूब गये, और उसके महिमामंडन से शुरू होकर माका नाका तक पहुंच गये ।
हम चुपचाप सुन रहे थे और अचानक से अपना फोन निकाला और वंदना का नंबर डायल कर दिया.......
अब हमे भी गहरी हो गई थी,
हैल्लो......,वंदना की पतली सी आवाज मेरे कानो को हल्के से छुई ।
हैल्लो वंदना ? हमने लडखडाती जुबान से पूछा ।
हां...आप कौन ? उसने पूछा ।
वंदना मै तुम्हारा जीजा जी बोल रहा हूं, पहचाना ? हमने मजाकिया लहजे मे अपना परिचय दिया, शराब के नशे ने जैसे सारा डर ही खत्म कर दिया था ।
कौन अभिनव ?..........
हां अभिनव । हमने हामी भरी ।
क्या यार मैने तो सोचा कि अब तुम्हारा काल आयेगा ही नही । उसने शिकयत करी।
क्यो एसा क्यों सोचा तुमने ? हमने मूंगफली मुह मे डालते हुए पूछा ।
मतलब एक खूबसूरत लडकी किसी लडके को अपना नंबर दे और वो लडका चार दिन तक काल ना करे तो क्या समझा जाये ? उसने तफरी लेते हुए कहा और हसने लगी........
उसकी हंसी को मै अपनी धडकनो मे महसूस कर रहा था ।
नही यार ऐसी बात नही है, वो हम थोडा बिजी थे इस लिये काल नही कर पाये, और वैसे भी हमने कोई वादा थोडे किया था काल करने का ।
हमने अपनी बहकती हुई जुबान से झूठ कहा ।
एक बात पूंछूं ? उसकी आवाज मे किसी बात कि शंका सी थी ।
हां पूंछो ।हमने बेफिक्र होके कहा और कांउटर पे रखा आखरी पैग डकार गये ।
तुमने पी रखी है ?? हिचकते हुए उसने पूछा ।
घोर संन्नाटा..........अब क्या कहें अब तो पकडे गये, पहली ही बातचीत मे शराबी का तमगा मिल गया......वगैरह वगैरह बातें दिमाग में घूमने लगीं...........
नही नही यार......
Actually हां ! हमने थोडी सी पी है, पर क्या करें चार दिन से तुमको काल करने की कोशिश कर रहा हूं पर हिम्मत ही नही होती,
हा पी है, क्योंकी तुमसे बहुत कुछ कहना चाहता हूं पर मुह से आवाज ही नही निकलती.................
हां पी है.............
.हमने अपने दिल की सारी भडास निकाल दी, जो नही कहना था वो भी कह दिया, हमे सब कुछ धुंधला सा दिखने लगा, अचानक पलकों मे ठंडक सी महसूस हुई, और ना जाने क्यों दिल भर आया ।
हम बोलते जा रहे थे, और लल्लन का एक हांथ मेरे कंधे पर था, जैसे कह रहा था कि चंता मत कर चाहे कुछ भी हो जाये पर मै हमेशा तेरे कंधे पर इसी तरह रहुंगा।
वो चुपचाप मेरी बातें सुनती रही, और जब हम चुप हो गये तो उधर से सिर्फ इतना ही जवाब आया............
"सुबह फोन करना अभिनव बहोत रात हो गई है, take care"

चैप्टर.6.... 

उस दिन भी बाकी दिनो की तरह ही सुबह ९:०० बजे बाप की पचहत्तर गलीयाॉ और माँ के ग्यान वर्धक तानो के बाद नींद खुली।
पापा दुकान के लिये निकल चुके थे, और माँ हर पांच मिनट मे आवाज लगा रही थी..............
"अभी, ..... उठ कितना सोयेगा, नाश्ता तैयार है जा जल्दी फ्रेश होकर आ "
हम रात के हैंगओवर मे थे, रजाई से निकलने का मन नही हो रहा था, सर दर्द से फटा जा रहा था ।
हमने बिस्तर से ही मां को आवाज लगाई.......
मम्मी......प्लीज एक कप चाय यहीं ले आइये हम अभी नाश्ता नही करेंगे ।
और फिर रजाई मे घुस गया ।
करीब पांच मिनट बाद मां चाय का कप लिये कमरे मे आई, और टेबल पर रखकर मेरी रजाई एकदम से खींच ली, और बोली जरा भी चिंता नही है तुम्हे, बस सारा दिन घूमना और आवारा गर्दी करना, कुछ नही तो कमसे कम पापा की हेल्प ही कर दिया कर दुकान जाके, और सबसे पहले तो तुम उस मिश्रा के लडके का साथ छोड दो....
क्या नाम है उसका.........हां लल्लन का । खुद तो कुछ करता नही है और तुम्हे भी निकम्मा बना दिया..........
लंबे चौडे टेलर के बाद प्यार से बोली, चलो अच्छा
चाय पियो । और फ्रेश हो लो तबतक मै नाश्ते मे पोहा बनाती हूं ।
हम उठे चाय का कप उठा कर एक घूंट ही पिया था कि, रात की बातें याद आ गईं..........
वंदना ने सुबह फोन करने को कहा था ।
हमने तुरन्त कप एक तरफ रखा और लपक के अपना फोन चार्जिंग से निकाला, लाक खोला और देखा कि तेरह मिस काल आई हुई थी, जिसमे दो लल्लन की एक पापा की और बाकी...........
बाकी दस मिस काल सिर्फ एक नाम से, "वंदना"
हमने तुरंत काल बैक किया, पहली घंटी पूरी बजी भी नही कि उसने फोन उठा लिया.......
कहां हो यार ? सुबह से काल कर रही हू कोई फोन नही उठा रहा । उसकी कडकडाती आवाज ने मेरी पूरी नींद हवा कर दी ।
सौरी यार ! सो रहा था इसलिये.......चाय का घूट लेते हुए हमने कहा ।
हां तो अब बताओ क्या कह रहे थे कल रात को ? उसने गुस्से से पूंछा ।
क्या ?...... क्या कहा हमने ? हमने उससे पूछा । हमे सच मे नही याद था कि आखिर कल रात हमारे बीच क्या बातचीत हुई ।
अभिनव मत पिया करो please. उसने समझाते हुए कहा ।
I am sorry vandana, I didn't mean like that.
मै कल बहक गया था, but I promise आगे से नही पियूंगा । हमने वंदना फोन से माफी मांगी ।
That's like a good boy......उसने कहा और हसने लगी ।
इसके बाद हमारी बात करीब २५ मिनट तक चलती रही, भाई की शादी से लेकर पिछली रात की बातों तक हमने अपने सारे पलों को रिवाइंड किया ।
अब हमारे बीच की दोस्ती और गहरा रही थी, जब वो फोन पर बोलती तो लगता, बस बोलती ही रहे और मै चुपचाप सुनता रहूं, उसकी बचकाना सी हंसी मुझे अंदर तक गुदगुदा देती ।
वैसे तो हम दोस्तो के साथ जमकर मजाक करते पर उसके साथ एक एक शब्द ऐसे बोलते जैसे हम से बडा शरीफ लौंडा पूरे कानपुर मे नही हो ।
खैर हम अपने दिल कि बात तो उसको फिर से नही बोल पाये पर अगले रविवार को मुलाकात का पिरोगराम जरूर बन गया ।
मिलने की जगह "मीज्जाह" पिज्जा शाप रखी, क्योंकी वो वंदना के घर ( जो गुमटी मे है) के करीब हा ।
शाम को हम और लल्लन बनारसी चाय वाले( जो पहले मोतीझील मे थी) के यहां कुल्लहड वाली चाय सुडक रहे थे, और एक हांथ मे छोटी गोल्ड फ्लेक बडे कायदे से फंसाय खडे थे ।
बनारसी के यहां बहुत से महाग्यानी लोग चाय की गिलास हांथ मे लिये एक चाय वाले की राजनीतिक रणनीतियों पर ग्यान पेल रहे थे ।
बातों ही बातों मे लल्लन हम से पूछ बैठे.........
अमे गुरू वंदना का क्या भया बे ? सुबह फोन करने का बोलिस थ, करेव की नही ?
ना चाहते हुए भी हमें लल्लन को सब बताना पडा, और ये भि बताना पडा कि संडे को मुलाकात भी करनी है ।
पहले तो लल्लन ने हमाई इस सफलता पे हमको मुबारक दी और उसके बदले चाय और सिगरेट का बिल हमाये मत्थे मढ दिया ।
उसके बाद हम से कहने लगे कि गुरू बहुत जादा ना लबरियाना वरना लौंडिया फालतू समझ लेगी ।
पहली गये हो का बे ? हमने चिढते हुए कहा ।
वैसे बात तो लल्लन ने एक नंबर कही थी।
खैर अपने आप पर हसने के बाद हमने पूछा.......
काहे बे मिश्रा ये मीज्जाह कैसा रेस्टोरेन्ट है है ?
काहे का हुआ ? वहां खाली पिज्जा और पास्ता मिलता है, और शायद अशोक नगर चौराहे मा है । लल्लन ने बडी गंभीरता से बताया ।
नही बे मतलब जादा मंहगा तो नही है, काहे कि वंदना के साथ हमई वंही मीटिंग है ।
और तुम तो हमाय हाल जानते ही हो कि आजकल बहुत कडकी चल रही है ।
हमने चाय वाले को पैसे देते हुए अपना कंगलापन सुनाया ।
भइया ये तो पता नही........
आओ चलें यहीं पास मे ही है पता कल लेते हैं का भाव मा पिज्जा मिलत है हुआं ।
अपना गंगापारी दिमाग लगाते हुए उसने आइडिया निकाला और हमाई ओर उछाल दिया ।
बस फिर क्या हमने अपनी सेकेंड हैंड स्टनर मे चाभी लगाई, लल्लन को पीछे फिट किया और निकल पडे ।
पिज्जा के भाव पता करने..............

चैप्टर.7.... 

आज सुबह नौ बजे की जगह हम ७:०० बजे ही रजाई से निकल गये ।
कमरे से बाहर आते ही मम्मी और पापा ने हमे ऐसी नजरों से देखा जैसे किसी भूत प्रेत को देख लिया हो, मां ने तो इग्नोर किया पर पापा ने जरूर हमे आशीर्वाद स्वरूप गरियाया, जो कि हर रोज हमे प्राप्त होता है, पर आज उनके शब्दो मे ना फिक्र थी ना गुस्सा, बस प्यार ही प्यार था ।
तभी मां एक कप मे चाय लेकर आई और पकडा दिया ।
हम हाथ मे चाय लिये बालकनी मे आकर खडे हो गये, क्या खूबसूरत सुबह थी, पूरा कानपुर शहर कोहरे की चादर ओढे था, लग रहा था जैसे आसमान जमीन पर उतर आयजी ।
बाहर गुड्डू अपनी पान की गुमटी सेट कर रहा था, साढू भाई की जलेबी की दुकान पर जबरदस्त भीड थी, जिसमे जादातर टैंपो वाले थे, वहा से आती हुई गर्मा गरम जलेबी की खुशबू हमे मोहित कर रही थी ।
सलीम भाई अपनी जान से जादा प्यारी लमरेटा स्कूटर को चमकाने मे लगे थे, वहीं राजू चाय वाले के यहा कुछ बुजुर्गों का जमघट लगा था जो शायद अभी फूलबाग से मोरनिंग वाक करके आया हुआ था, और राजनीती पर चर्चा हो रही थी ।
इखलाक अपनी पुदीने की खिचडी वाली ठेलिया मे बडे बडे दो भगोने रखकर डाक खाने की तरफ जा रहा था,
और मोहल्ले के कुछ रंगीन मिजाज लौंडे अपनी अपनी सेटिंग को स्कूल तक ड्राप करने की योजना बना रहे थे ।
मै ये सब देखकर पछता रहा था कि रोज सुबह मै कैसे इन सब खूबसूरत नजारों को मिस कर देता था, कैसे हर रोज मैं सुबह की इस शीतल हवा को दरवाजे के बाहर से ही लौट जाने देता था ।
किसी के प्यार ने ही सही पर मुझे सुबह का मतलब सिखा दिया था ।
रविवार का दिन था तो हर हफ्ते की तरह हम और लल्लन ने आधा दिन ब्रजेन्द्र स्वरूप पार्क मे क्रिकेट खेल के बिताया, उसके बाद जब थक कर चूर हो गये तो, पंडित maggi point ने हमे सहारा दिया, मैगी खाते खाते हम सोचने मे लगे थे कि पहली ही मुलाकात मे वंदना को कैसे इंप्रेस किया जाये ।
क्योंकी हमारा शरीर सिंगल पसली है तो, सबसे जादा इसी बात की टेंसन थी की पहना क्या जाये ?
हम ने लल्लन से सुझाव मांगा.......
अबे गुरू नीली जींस के ऊपर सफेद कुर्ता पहिन लेना, और भैरव नाथ के दर्शन करके काला टीका जरूर लगा लेना । लल्लन ने मैगी सुडकते हुए अपनी बहुमूल्य ग्यान झाडा ।
पगला गये हो का बे, लौंडिया से मिलने जा रहे हैं, कौनो मोदी की रैली मे नारा लगाये नही जा रहे । हम ने मैगी मे थोडा चाट मसाला छिडकते हुए लल्लन को झाडा ।
समय साम को ६:०० बजे,
आसमानी रंग की फ्लू की जींस, ब्लड रेड कलर की शर्ट,
हांथ मे सोनाटा की घडी (जो सिर्फ खास मौको पर ही दराज से बाहर आती है) पहन के, और ऊपर से पार्क एवेनियू का स्प्रे ( जो लल्लन के घर से झेल दिये थे ) उडेल के चिकोलाइट हो गये ।
ठंड जादा थी, इस लिये ऊपर से एक स्लीवलेस जैकेट भी डाल ली । और पहुंच गये पिता जी की दुकान ।
दुकान पहुंचते ही पिता जी ने स्वागत किया ..............
"आ गये लाड साहब"
कहां जा रहे हो बाबू जी ? पापा ने बडी बडी आंखे करते हुए पूछा ।
कहीं नही पापा बस एक दोस्त की शादी मे जाना है । हम ने डरते हुए छूठ कहा, और नजरे चुराते हुए एक कोने मे कुर्सी लेकर बैठ गये ।
पापा ने बहुत चतुराई से कस्टमर को फांसा और १०० रुपय मे मिलने वाली चाइनीज लाइट की लड को २५०/- मे पहिना दिया ।
उसके बाद हमाई तरफ मुडे और बोले............
कहो बाबू जी कितना चाहिए ? और जेब से सौ की गड्डी निकाल ली ।
हम ने पांच सौ रुपय लिये और चुपचाप से खिसक लिये, और रास्ते भर बस यही सोचते रहे कि आखिर मां बाप को हमारी जरूरतों का पता कैसे चल जाता है ? .......
समय ६:३०, स्थान अशोक नगर चौराहा
वैसे तो हम आधा घंटा पहले ही पहुंच गये थे पर जादा देर अकेले खडे नही रहना पडा, काहे कि चौराहे पर हमके वैभव भइया ( वैभव मिश्रा जी जो हमारे बडे भाई और मित्र भी हैं) मिल गये, जो कि अपनी टोयोटा क्वैलिस गाडी से टिके हुए फ्रूटी सुडक रहे थे ।
उनके साथ उनके एक मित्र भी थे ।
हमको देखते ही बोले, काहे अभिनव कहां इतना लल्लनटाप बन के घूम रहे हो ?
पहले तो हमने भइया को प्रणाम किया और फिर सारा हाल-ए-दिल सुना डाला ।
हमाई बतें सुने के बाद वो सिर्फ इतना बोले.......,
"तुम गधऊ कभी नही सुधरोगे" और हमाये हांथ मे फ्रूटी पकडा दिहिन ।
भइया से बात कर ही रहे थे कि वंदना की काल से हमारा फोन भनभना उठा ।
हैल्लो.....
कहां हो अभिनव ? हम यहां पहुंच गये । उसने पूछा।
हां, हम यंही हैं बगल मे बस दो मिनट मे पहुचे । हमने उसको रुकने के लिये कहा और वैभव भइया से विदा ली । बदले मे भइया ने भी बेस्ट आफ लक विश किया।
मिज्जाह शाप मे अंद घुसे, करीब तीन टेबल बांई ओर लगी हुई थी जहां पे लगे कांच ले बाहर का पूरा नजारा दिख रहा था और करीब तीन या चार गेट के बिल्कुल सामने, और बांई ओर एक छोटा सा काउंटर था, जिसके ऊपर से एक सीढी ऊपर पहली मंजिल को जा रही थी ।
संडे की शाम थी तो भीड कुछ जादा थी ।
फिर हमाई नजरे वंदना पर पडीं जो बांइ तरफ लगी सबसे आखरी टेबल पर बैठी थी ।
सफेद काटन का पटियाला स्टाइल का फुल स्लीव सलवार कुर्ता, खुले काले बाल, कानों मे ट्राइंगल शेप के इयर रिंग,
एक हांथ मे ट्राइंगल शेप की घडी (जिसपर कुछ नकली हीरे भी जडे थे) दूसरे हांथ मे वही सैमसंग j5 फोन पकडा हुआ, आंखो मे शरारत, मांथे पर एक पेन के डाट जैसी बिंदी,ऊपर से काले रंग का ऊनी स्टौल, और होठों मे वही 70mm स्माइल...........
हमेशा की तरह वो बेहद खूबसूरत लग रही थी ।
हमने हांथ हिला के हैल्लो किया और उसके सामने बैठ गया । मन मे लड्डू फूट रहे थे, नजरे उसके चेहरे से चाहकर भी नही हट रहीं थी और दिल तो जैसे जनरेटर हो गया था ।
कैसी लग रही हूं ? उसने डरेक्टली पूछ लिया ।
अब उसे कैसे बताता की कैसी लग रही थी वो, अगर सच बताने जाता तो पूरी शाम बीत जाती, इस लिये सिर्फ एक शब्द ही कहा............,.
"Beautiful"
तभी एक वेटर मेन्यू कार्ड लेकर हमरी टेबल पे आया, हमने मैन्यू कार्ड वंदना की तरफ बढाते हुए शराफत दिखाई, और मन ही मन सोचने लगा कि भगवान जेब मे बस ६०० रुपिया पडा है, कही कुछ लम्बा चौडा आडर ना दे दे ।
"One double cheez regular pizza with onion or capsicum toppings, and one white pasta."
उसने आडर दिया और मैन्यू मेरी तरफ खिसका कर बोली "देखो और कुछ तो नही मंगाना"
हमने मैन्यू पढना शुरू किया, इसलिये नही कि कुछ आडर करना था, बल्की हम तो ये देख रहे थे कि दिया हुआ आडर बजट के बाहर तो नही........
खैर आडर बजट मे ही था, और हमने राहत की सांस लेते हुए वेटर को मैन्यू पकडा या और जाने का इशारा किया,
हम बैठ कर इंतजार कर रहे थे कि कौन पहले बात चालू करेगा कि तभी वो बोल पडी.......
तुम करते क्या हो अभिनव ?
कुछ खास नही बस अभी ग्रेजुएसन पूरा किया है, और पापा के बिजनेस मे थोडा बहुत हांथ बटाता हूं ।
ओह! अच्छा । उसने साधारण सा रियेक्सन दिया जैसे अक्सर रिश्तेदार यही सवाल पूछने के बाद दोते हैं ।
वैसे तुम क्या कर रही हो आजकल ? मैने उसका प्रोफाइल जानना की कोशिश की ।
Nothing much, बस MBA की तयारी कर रही हूं , इस साल मेरा final year है कालेज का ।
Nothing much तो एसे बोला उसने जैसे MBA करना हलवा हो, अरे हमाये जैसे लौंडो से पूछो जो हाई स्कूल भी बहुत रगड रगड के पास होते हैं ।
खैर बाते चलती रहीं और खाना टेबल पर आ गया, पिज्जा (जो कि हम एक फ्रेंड की जन्मदिन पार्टी के बाद दूसरी बाप खा रहे थे) की महक ने एक पल को मेरा ध्यान वंदना से भटकाने की नाकाम कोशिश की ।
खाना खाने से जादा मै उसको देख रहा था, कितने तरीके से वो पिज्जा की एक स्लाइस उठाती, हल्का सा टमाटर सौस ऊपर से डालती और........
साला पिज्जा भी उसदिन अपनी किस्मत पे इतरा रहा था ।
उस दिन हमारी बहोत सारी बातें हुई, हमने अपने दिल की बात इशारों मे कई बार कही, पर उसने कोई रिस्पांस नही दिया, ।
ऐसा नही था कि समझती नही थी, बल्की समझ तो वो उस दिन ही गई थी, जब हमने शराब के नशे मे उसको फोन किया था । पर पता नही क्यों लडकिंया ना समझने की एक्टिंग क्यों करती हैं ?
खैर हमने खाना खत्म किया, और ४३५₹ का लंबा चौडा (हमारे लिए) चुकाया ।
वंदना ने अपना फोन निकालकर देखा तो आठ बज चुके थे,
अभिनव बहुत टाइम हो गया अब हमे निकलना चाहिए । एक चिंता की लकीर उसके माथे पर उकर गई ।
ठीक है । हमने निकलने का इशारा करते हुए बे मन से कहा ।
It was a nice meeting with you Abhinav, by and take care. उसने कहा और चल पडी ।
हम उसको रोक कर अपनी बात बोलना चाहते थे, पर तब तक वो काफी दूर निकल गई, और हम बस ओझल अंखो से उसे देखते रहे..............
तभी हमने अपने फोन निकाला, उसमे एक मैसेज टाइप किया और वंदना को सेंड कर दिया.......
हमने देखा कि वंदना ने रिक्शे मे बैठने से पहले अपना फोन निकाला, शायद मैसेज पढकर उसने मेरी तरफ मुडकर देखा, हल्का सी मुस्कान उस लडकी के चेहरे पर नजर आई, और वो रिक्शे पे बैठ कर चल पडी।
और हम चेहरे पर खामोशी लेके बस उसे देखते रहे और उसके रिप्लाई का इंतजार करने लगे......
मैसेज मे हमने सिर्फ इतना लिखा था......
"Vandana I love you"

चैप्टर.8.... 

सुबह उठकर आज सबसे पहले हमने अपने फोन की झडी ली, पर कोई काल या मैसेज नही था।
हम सोचने लगे कि का बात हुई गई यार, कहीं नाराज तो नही हो गई......
हमने मोबाइल के आउटबाक्स मे जाकर दोबार मैसेज चेक किया, कि कहीं गलती से कुछ और तो नही सेंड हो गया । लेकिन वही टाइप था जो हमने कल शाम उसे भेजा । फिर हमने वंदना का नंबर डायल किया, पर लल्लन की एक बात याद आ गई और कट कर दिया.......
"जादा लबरियाना नही वरना फालतू समझ लेगी"
हमने मुह हांथ धोया और पहुच गये सीधे लल्लन के घर, लल्लन हमको घर के बाहर ही बनारसी की दुकान पे चार और लफ्फाजों के साथ मिल गये ।
आओ श्रीवास्तव ! और सुनाव का हाल हैं, ? लौंडिया से बात बनी की नही ? हमको कमला की पुडिया पकडाते भय हमाय हाल चाल पूछिन ।
अमे नही यार.......
प्रपोज तो हम कर दिये लेकिन गुरू जवाब नही मिला.......,
और कल का सारा समाचार लल्लन को सुना डाला ।
का बे चीलर एकदम टोपा पना की बात कर दिये ना । अबे लौंडिया सामने रहते हुए भी कोई मैसेज करके प्रपोज करता है का ? पिचकारी मारते भय कहिन ।
गुरू जादा नवाबी ना पेलो तुम्हाई भी तो फट रही थी गंगापार वाली को प्रपोज करने मे । साले चार महीने बाद तो प्रपोज कर पाये रहे, और हमका ग्यान बता रहे हो । हमने गुस्से मे लाल पीले होकर कहा ।
अमे छोडो ! ये चिलगोजे जैसा मुह ना बनाओ, ये बताओ करना का है ? चौरसिया को "लिख लेना" बोल के घर की तरफ बढे ।
अबे कालेज चलें क्या उसके, अगर मिल गई तो वंही जवाब पूछ लेना । खुराफाती दिमाग से लल्लन ने आइडिया निकाला और हमाये दिमाग मे दे मारा ।
ठीक है । ट्राई करते हैं ।
और लल्लन के घर पहुंच गये ।
काहे की हम सिर्फ मुह धोकर घर से निकले रहेन, इसलिये हमने लल्लन के घर पर कउआ स्नान किया, उसकी एक शर्ट ( जिसमे हमाये जैसे दुई ठो फिट हुई जायें) पहनी बालों मे हल्का बजाज आल्मंड तेल चुपडा, मुह मे हल्की सी फेयर एंड लवली क्रीम ( जो लल्लन दिन मे पांच बार लगाता है) लगाई और चीकोलाइट होकर लल्लन की सूपर स्पलैंडर में बैठ के निकल पडे.........
समय करीब २:०० बजे थे, हम और लल्लन माल रोड स्थित S.N Sen girls p.g college पहुंच गये, वंदना ने यही कालेज बताया था ।
अभी गेट पर बिल्कुल सन्नाटा था, बस एक मरियल सा चपरासी अपने शरीर से भी पतला डंडा लिये बाहर कुर्सी डाले कुछ रिक्शे वालों के साथ बीडी फूंक रहा था ।
हमने उससे छुट्टी का टाइम पूछा तो बताया कि 2:30 बजे होगा ।
हम और लल्लन सामने की गुमटी मे खडे होकर इंतजार करने लगे......
वहां आस पास कई लौंडे हमाये जैसे ही अपनी अपनी सेटिंग का इंतजार कर रहे थे, और सिगरेट, मसाला जम के चल रहा था ।
ठीक ढाई बजे कालेज का दरवाजा खुला, और अंदर से थोक के भाव में लडकियां बाहर आने लगीं.........
हमई नजरें जहां वंदना को ढूंडने लगीं, वहीं लल्लन को हर लडकी मे अपनी गंगापरिन नजर आ रही थी ।
करीब देढ दो सौ लडकियां के बाद सबसे आखिर मे वंदना अपनी दो सहेलियों को साथ बाहर निकली......
साधारण से सूट मे भी वो हर लडकी से अलग नजर आ रही थी, कंथे पर एक खादी टाइप का हल्का नारंगी बैग और हांथ मे दो मोटी मोटी किताबें, जिन्हे उसने बहुत प्यार से सीने पर दबया हुआ था ।
पहले तो सोचा यंही पर उसको रोक लूं, फिर खयाल आया कि सबके सामने ऐसा करना ठीक नही.......
वो हमे नही देख पाई थी, और पैदल ही सहेलियों संग फूलबाग चौराहे की तरफ चल पडी ।
लल्लन ने सिगरेट बुझाते हुए, उसके पीछे चलने का इशारा किया.....
हमने बाइक स्टार्ट करी और धीरे धीरे चल पडे,
फूलबाग चौराहे पर उसकी दोनो सहेलियों ने टैंपो करी और चलीं गई, पर वो वहीं पर खडी रही...
हमने सोचा मौका अच्छा है उससे बात करने का,
होटल गौरव के नीचे हमने बाइक खडी की और लल्लन को रुकने के लिये बोलकर उसकी तरफ पेदल ही चल पडा.....
हम उसके पास पहुचने ही वाले थे कि,
एक बजाज पल्सर वंदना के सामने आकर रुकी, बाइक पर सवार शख्स ने हेल्मेट का शीशा ऊपर करके उसको कुछ बोला, और वो बैठ कर पल्सर सवार के साथ निकल गई............
हमाये दिल मे जैसे 15-20 दौरे एक साथ पड गये, कदम अपनी जगह जम गये, निगाहें बस एकटक ओझल होती उस पल्सर को देखती रहीं और दिमाग में ना जाने कहीं से वंदना के प्रती हीन भावना घर करने लगी.....
तभी लल्लन ने बगल मे आकर अपनी तेज रफतार स्पलैंडर के झंम से ब्रेक मारे, और बैठने का इशारा किया ।
थोडी देर मे ही बडे चौराहे के पास हम ठीक उस पल्सर के पीछे थे, और कोशिश कर रहे थे कि पीछे बैठी वंदना हमे देख ना पाये,
लल्लन जम के उस पल्सर वाले को गरियायो पडे थे, वही हमे एकतरफा प्यार मे धोखा खाये हुए प्रांणी वाली फीलिंग हो रही थी, पर मन मे अभी भी यही था कि,
कोई रिश्तेदार या भाई भी तो हो सकता है ।
मोतीझील चौराहे के ठीक सामने वो पल्सर रुकी, वंदना वहीं पर उतरी, हांथ हिला कर उस शख्स को बाये किया और वो पल्सर वाला मधुराज हौस्पिटल की तरफ मुड गया,
लल्लन ने हमे उतार के वंदना के पीछे जाने को कहा और खुद बाइक से उस पल्सर सवार के पीछे चला गया......
हमे कुछ समझ नही आ रहा था, पता नही लल्लन का करवासा था,
खैर हम वंदना के पीछे पीछे चल पडे, दिमाग मे ऊट पटंग विचार आ रहे थे, और आंखो मे चंद पानी के कतरे, जिन्हे हमने जबरदस्ती कैद कर रखा था ।
तभी हमने वंदना को पीछे से आवाज लगाई......
वंदना......
वो पीछे मुडी, और खोई हुई नजरों से हमे देख ने लगी, जैसे पहचाना ही ना हो,
थोडा और पास जाने पर उसने बडे अचम्भे से मेरी तरफ देखते हुए कहा......
अरे अभिनव तुम ? यहां ?
वंदना सिर्फ एक सवाल हैं मेरे मन मे, प्लीज सच सच जवाब देना, । मैने ठीक उसकी नजरों मे नजरे डालते हुए कहा ।
जबतक वो कुछ समझ पाती हमने डायरेक्ट्ली पूछ लिया........
Do you like me ?
मतलब ?
उसने उम्मीद नही करी थी शायद कि हम उससे ऐसे डायरेक्ट्ली पूछ लेंगे ।
Do you like me or not ?
दिमाग काम नही कर रहा था, और हम सिर्फ जवाब जानना चाहते थे ।
Yes.......लेकिन.......
वो आगे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन उससे पहले ही हमने उसे गले से लगा लिया.....
और चंद सेकेंड मे ही उसकी चुन्नी मेरी आंखो से निकले प्रेम सागर से तर हो गई,
और उसके हांथ किताबें छोडकर सीधे मेरे कंधे पर आ टिके,.......
हम एक दूसरे मे खो से गये थे, पूरा मोतीझील हमे बडी बडी आंखो से देख रहा था, पर हमे किसी की परवाह नही थी, जैसे पूरा कानपुर हमारी मोहब्बत का गवाह बन रहा था, और हम बेफिकर बस खुद में खुद को पा चुके थे ।
उसकी आंखों से भी चंद कीमती मोती यूं ही निकल पडे....
और सिर्फ एक ही शब्द उसके मुह से निकला........
"पागल हो तुम"
अलग होने के बाद हमें अहसास हुआ कि हमें पूरा मोतीझील देखकर हंस रहा है,
हम बुरी तरह झेंप गये............
तभी फोन पर घंटी बजी, और हमारे प्यार के उस पहले खूबसूरत पल का समापन हुआ,
फोन रिसीव किया, उधर से लल्लन की चुभती हुई आवाज कानों मे पडी......,.
अबे, पकड लिया है लौंडे को जल्दी आर्य नगर चौराहा आओ रिक्शा करके ।
वंदना को पीछा करने की सारी कहानी बताई, और पता चला की वो पल्सर वाला शख्स उसके मामा का लडका है, जो सिर्फ उसे यहां तक छोडने आया था ।
हमने तुरंत लल्लन को फोन लगाया.......
जान दो बे, साला है अपना, तुम्हारी भाभी ने हां कह दिया है........हमने खुशी से उछलते हुए कहा ।
तडाक तडाक की आवाज मेरे फोन मे जोर से आई,........
लल्लन बाबू की खुशी का ठिकाना नही थी, और उसी खुशी मे मामिया ससुर के लौंडे को कनपटिया जो दिये थे ।
हमाये, लल्लन और वंदना के जोरदार ठहाकों से पूरा मोतीझील गूंज उठा...........
तो ये थी हमाई लब स्टोरी, आज हमारी मोहब्बत को तीन साल से ऊपर हो गया, और अगले महीने हमाई सगाई है, और कुछ महीने बाद शादी.........
हम आज भी हर वैलेनटाइन को मिज्जाह शाप में एक दूसरे को मैसेज करके I Love you विश करते हैं
आज भी मोतीझील से निकलने मे उतनी ही शर्म आती है, जितनी उस दिन आई थी, आज भी वंदना उतनी ही खूबसूरत है, और आज भी हम उसको उतना ही प्यार करते हैं..........
और हां ! हमाये ममिया ससुर का लौंडा आज भी लल्लन को पूरे कानपुर में ढूंढता है 😉
और लल्लन ?...............
अबे वो आज भी दो ठो बोतल डकारने के बाद अपनी गंगापरिन को याद करके रोता है,....
काहे बे ?.......

समाप्त       


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