तुम्हे पता तो होगा प्रीती
(कविता ज़रा लम्बी है, लेकिन आग्रह है, कि यदि पढ़ें, तो अंतिम पंक्ति तक पढ़ें)
तुम्हें पता तो होगा प्रीती!
इसी महीने की सोलह का
कार्ड मिला तो होगा प्रीती
तुम्हें पता तो होगा प्रीती!
मुझसे पहले ये खुशखबरी
तुम तक तो पहुंची ही होगी
चाहे कोई दे या ना दे
खबर किसी से ली ही होगी
वही पुराना स्टाइल तुम्हारा
'बोलो ना, बतलाओ ना,
कसम है तुमको मेरे सर की
सच्ची में, बतलाओ ना'
अच्छा, ये सब छोडो! तुमसे
और बहुत कुछ बतलाना था
पिछले साढ़े तीन साल का
किस्सा भी तो दुहराना था
जब से तुम यूँ गई छोड़ कर
यही सोचकर सदमे में था
बड़ी बेवफा निकली प्रीती
मैं भी किसके धोखे में था?
अलगे कुछ हफ़्तों तक बिलकुल
खाना पीना भूल गया मैं
उलटी-सीधी हरकत कर के
दिन भर हँसना भूल गया मैं
कुछ यूँ ही दिन गुज़र रहे थे
इक दिन माँ कमरे में आई
मेरे सर पर हाथ फेर कर
मुझको इक तस्वीर दिखाई
आधे मन से देखा उसको
नीचे नाम लिखा था - स्वाती
नज़र पड़ी सीधे गलती पर
यहाँ भी 'त' पर वही बड़ी 'ई'
याद है कितना लडती थी तुम
"गलत नहीं है, यही सही है
बचपन से ही यही लिखा है
तुम्हें तो कुछ भी पता नहीं है"
स्वाती क्या प्रीती सी होगी?
जाने उसका मन कैसा हो
पर ये भी धोखा ना दे दे
उस सी ना हो तो अच्छा हो
ऐसी कच्ची-पक्की बातें
कई दिनों तक मैंने सोची
फिर इक दिन सब सोच-समझकर
मैंने अपनी हामी भर दी
एक रोज़ भाभी ने आ कर
कागज़ का टुकड़ा पकडाया
उस टुकड़े पर दस अंकों का
नंबर मैंने लिक्खा पाया
'सेवन' से वो शुरू हुआ था
मतलब नंबर नया-नया था
और अगर वो नया था तो फिर
मेरी खातिर लिया गया था
चार दिनों तक उस नंबर को
अलट-पलट कर समय बिताया
फिर थोड़ी सी हिम्मत कर के
मैंने उसको फोन लगाया
वो दिन है और आज का दिन है
हम दोनों हैं इक-दूजे के
वो सारे गम भूल गया मैं
गई थी जो तुम मुझको दे के
याद है तुम कहती रहती थी
'हरदम यूँ ही हँसते रहना'
अब मैं बस हँसता रहता हूँ
किसी से थोडा पता तो करना
अच्छा अब मैं चलता हूँ, हाँ?
अगले हफ्ते शादी है ना
बहुत सी तैयारी बाकी है
बस तुम ठीक समय पर आना
पहला कार्ड तुम्हारी खातिर
मैंने सबसे अलग रखा था
मगर ज़रा सा मसला था, बस
पता तुम्हारा नहीं मिला था
इस कविता को मान निमंत्रण
शादी में तुम पक्का आना!
'कार्ड मुझे तो मिला नहीं' सा
कोई बहाना नहीं बनाना
यूँ तो पूरा पता तुम्हारा
तेरे कार्ड पर नहीं लिखा था
'स्वर्गवासिनी प्रीती' लिख बस
गंगाजी में बहा दिया था
उसी घाट पर, जिस पर उस दिन
किया विसर्जित शेष तुम्हार
पथराई आँखें ले, प्रीती
वहीँ गया था कल दोबारा
रोया नहीं मगर मैं प्रीती
गंगा के आगे क्या रोना?
छोडो, सुनो! ज़रूरी है पर
इस अवसर पर तेरा होना
एक दफा फिर से कहता हूँ
शादी में तुम पक्का आना
कसम है तुमको मेरे सर की
सोलह को बस भूल न जाना
साभार
-म्रदुल कपिल
तुम्हें पता तो होगा प्रीती!
इसी महीने की सोलह का
कार्ड मिला तो होगा प्रीती
तुम्हें पता तो होगा प्रीती!
मुझसे पहले ये खुशखबरी
तुम तक तो पहुंची ही होगी
चाहे कोई दे या ना दे
खबर किसी से ली ही होगी
वही पुराना स्टाइल तुम्हारा
'बोलो ना, बतलाओ ना,
कसम है तुमको मेरे सर की
सच्ची में, बतलाओ ना'
अच्छा, ये सब छोडो! तुमसे
और बहुत कुछ बतलाना था
पिछले साढ़े तीन साल का
किस्सा भी तो दुहराना था
जब से तुम यूँ गई छोड़ कर
यही सोचकर सदमे में था
बड़ी बेवफा निकली प्रीती
मैं भी किसके धोखे में था?
अलगे कुछ हफ़्तों तक बिलकुल
खाना पीना भूल गया मैं
उलटी-सीधी हरकत कर के
दिन भर हँसना भूल गया मैं
कुछ यूँ ही दिन गुज़र रहे थे
इक दिन माँ कमरे में आई
मेरे सर पर हाथ फेर कर
मुझको इक तस्वीर दिखाई
आधे मन से देखा उसको
नीचे नाम लिखा था - स्वाती
नज़र पड़ी सीधे गलती पर
यहाँ भी 'त' पर वही बड़ी 'ई'
याद है कितना लडती थी तुम
"गलत नहीं है, यही सही है
बचपन से ही यही लिखा है
तुम्हें तो कुछ भी पता नहीं है"
स्वाती क्या प्रीती सी होगी?
जाने उसका मन कैसा हो
पर ये भी धोखा ना दे दे
उस सी ना हो तो अच्छा हो
ऐसी कच्ची-पक्की बातें
कई दिनों तक मैंने सोची
फिर इक दिन सब सोच-समझकर
मैंने अपनी हामी भर दी
एक रोज़ भाभी ने आ कर
कागज़ का टुकड़ा पकडाया
उस टुकड़े पर दस अंकों का
नंबर मैंने लिक्खा पाया
'सेवन' से वो शुरू हुआ था
मतलब नंबर नया-नया था
और अगर वो नया था तो फिर
मेरी खातिर लिया गया था
चार दिनों तक उस नंबर को
अलट-पलट कर समय बिताया
फिर थोड़ी सी हिम्मत कर के
मैंने उसको फोन लगाया
वो दिन है और आज का दिन है
हम दोनों हैं इक-दूजे के
वो सारे गम भूल गया मैं
गई थी जो तुम मुझको दे के
याद है तुम कहती रहती थी
'हरदम यूँ ही हँसते रहना'
अब मैं बस हँसता रहता हूँ
किसी से थोडा पता तो करना
अच्छा अब मैं चलता हूँ, हाँ?
अगले हफ्ते शादी है ना
बहुत सी तैयारी बाकी है
बस तुम ठीक समय पर आना
पहला कार्ड तुम्हारी खातिर
मैंने सबसे अलग रखा था
मगर ज़रा सा मसला था, बस
पता तुम्हारा नहीं मिला था
इस कविता को मान निमंत्रण
शादी में तुम पक्का आना!
'कार्ड मुझे तो मिला नहीं' सा
कोई बहाना नहीं बनाना
यूँ तो पूरा पता तुम्हारा
तेरे कार्ड पर नहीं लिखा था
'स्वर्गवासिनी प्रीती' लिख बस
गंगाजी में बहा दिया था
उसी घाट पर, जिस पर उस दिन
किया विसर्जित शेष तुम्हार
पथराई आँखें ले, प्रीती
वहीँ गया था कल दोबारा
रोया नहीं मगर मैं प्रीती
गंगा के आगे क्या रोना?
छोडो, सुनो! ज़रूरी है पर
इस अवसर पर तेरा होना
एक दफा फिर से कहता हूँ
शादी में तुम पक्का आना
कसम है तुमको मेरे सर की
सोलह को बस भूल न जाना
साभार
-म्रदुल कपिल
एक नम्बर भाई
ReplyDeleteदिल को पूरा स्कैन कर लिए हो
वैसे हमारी भी कुछ ऐसी ही कहानी है
तुम्हारी प्रीती है और हमारी पिंकी
उनकी शादी भी कल (16 नवम्बर ) को थी
धन्यवाद
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